माथे पर तिलक लगाने का वैज्ञानिक-धार्मिक महत्व
माथे पर तिलक लगाने का वैज्ञानिक-धार्मिक महत्व
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आपको बता दें की रीति-रिवाज और परंपराएं हर किसी की व्यक्तिगत आस्था का सवाल होती हैं। परन्तु हिंदू धर्म में बहुत से ऐसे रीति-रिवाज हैं जिनके वैज्ञानिक आधार हैं।

हाथ जोड़कर नमस्कार करना
हाथ जोड़कर नमस्कार करना हिंदू धर्म की प्राचीन परंपरा और सभ्यता है। इसके साथ ही दोनों हाथों को जोड़कर नमस्कार करने से आप सामने वाले को सम्मान भी देते हैं साथ ही इस क्रिया के वैज्ञानिक महत्व के कारण आपको शारीरिक लाभ भी मिल जाता है। जब हम दोनों हाथों को आपस में जोड़ते हैं तो हमारी हथेलियों और उंगलियों के उन बिंदुओं पर दबाव पड़ता है जो आंख, नाक, कान, दिल आदि शरीर के अंगों से सीधा संबंध रखते हैं। इस तरह दबाव पड़ने को एक्वा प्रेशर चिकित्सा भी कहते हैं। वहीं इस तरह नमस्कार करने से हम सामने वाले के स्पर्श में भी नहीं आते हैं, जिससे किसी प्रकार के संक्रमण का खतरा भी नहीं रहता है।

नदियां में तांबे के सिक्के डालना
पुराने समय में तांबे के सिक्के हुआ करते थे जिनकी जगह आज स्टेनलैस स्टील के सिक्कों ने ले ली है।इसके साथ ही तांबा पानी को शुद्ध करता है। इसलिए पुराने में समय में नदियां में तांबे के सिक्के इसलिए डाले जाते थे, क्योंकि ज्यादातर नदियां ही पीने के पानी का श्रोत हुआ करती थीं।

माथे पर तिलक लगाना
दोनों भौहों के बीच माथे पर तिलक लगाने से उस बिंदू पर दवाब पड़ता है जो हमारे तंत्रिका तंत्र का सबसे खास हिस्सा माना जाता है। इसके साथ ही तिलक लगाने से इस खास हिस्से पर दबाव पड़ते ही ये सक्रिय हो जाता है और शरीर में नई ऊर्जा का संचार होने लगता है। तिलक लगाने से एकाग्रता में बढ़ोतरी होती है। चेहरे की मांसपेशियों में रक्त का संचार भी सही से होता है।

मंदिर की घंटियां
मंदिर में घंटे या घंटियां होने का भी वैज्ञानिक कारण है। घंटे की आवाज कानों में पड़ते ही आध्यात्मिक अनुभूति होती है। इससे एकाग्रता में बढ़ोतरी होती है और मन शांत हो जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि धंटे की आवाज बुरी आत्माओं को मंदिर से दूर रखती है। घंटे की आवाज भगवान को प्रिय होती है। वहीं जब हम मंदिर में घंटा बजाते है तो करीब सात सेकेंड तक हमारे कानों में उसकी प्रतिध्वनि गूंजती है। माना जाता है कि इस दौरान घंटे की ध्वनि से हमारे शरीर में मौजूद सुकून पहुंचाने वाले सात बिंदू सक्रिय हो जाते हैं और नाकारात्मक ऊर्जा शरीर से बाहर हो जाती है।

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