शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अलग रह रहे दंपत्ति को यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने के कानूनी प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती वाली याचिका पर केंद्र सरकार से मांगा है. इस याचिका पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी किया है. याचिका में यह कहा गया है कि, 'ये कानून महिलाओं के साथ गुलाम जैसा व्यवहार करते हैं और ये निजता के अधिकार सहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हैं.'
जानकारी के मुताबिक ओजस्व पाठक और मयंक गुप्ता ने हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 9 और साथ ही विशेष विवाह अधिनियम की धारा 22 व दीवानी प्रक्रिया संहिता के कुछ प्रावधानों को चुनौती दी थी. ये कानूनी प्रावधान सभी अदालतों को अलग रह रहे पति-पत्नी के वैवाहिक अधिकारों को बहाल करने का आदेश पारित करने का अधिकार देते हैं. आपकी जानकारी के लिए बता दें सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों के फैसला का हवाला देते हुए इस याचिका में कहा गया है कि, 'निजता एक बुनियादी अधिकार है और कोर्ट समझता है कि वैवाहिक अधिकारों दो प्रमुख बिंदु सहवास और संभोग हैं.'
इतना ही नहीं बल्कि याचिका में यह भी कहा गया है कि, 'न्यायिक ढांचा महिलाओं पर गलत तरह के बोझ जैसा है. साथ ही यह सामंती ब्रिटिश कानून पर आधारित है जो पत्नी को पति की चल संपत्ति मानता है.' इस याचिका के अनुसार यह प्रावधान निजता के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं. इतना ही नहीं बल्कि साथ ही संविधान के तहत मिली व्यक्तिगत गरिमा, आजादी और जीवन जीने के अधिकार का भी हनन हैं
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