इन दिनों नव तपा चल रहा है. भीषण गर्मी से लोग हलाकान हो रहे हैं. जल संकट की खबरें अखबारों में जगह घेर रही है. जल का मूल्य सिर्फ संकट के समय ही समझा जाता है. अन्यथा व्यर्थ पानी बहाने की घटनाओं को भी हम अनदेखा कर देते हैं, जो उचित नहीं है|
धरती की छाती को भी हमने इतना गहरा खोद दिया है कि अब उसके आंचल से भी जल की बूंदें भी नहीं निकल पा रही है. अति जल दोहन के कारण सर्वत्र सूखे की स्तिथि निर्मित हो रही है. यह सब हमारी नादानियों का ही प्रतिफल है जिसे हम सबको भोगना पड रहा है|
जल्द ही बारिश का मौसम आने वाला है. इसके पहले बारिश की बूंदों को सहेज कर हम अपनी नादानियों की भरपाई कर सकते हैं. अपने घर,आफिस या प्रतिष्ठानों की छत के पानी को जमीन में उतारने के सरल ‘वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम’ को अपनाकर भू जल स्तर को बढाकर साल भर के जल कष्ट से मुक्ति पाई जा सकती है. लेकिन प्राय: वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के प्रति जन जागरूकता का अभाव देखा गया है. यहाँ तक की कई सरकारी कार्यालयों और नगर निगम के मुख्य और झोन कार्यालयों में यह सिस्टम या तो लगा ही नहीं है या मरमत की बाट जोह रहा है. ऐसे में जनता से बड़ी अपेक्षा रखना बेईमानी होगा|
बारिश की बूंदों को बचाने के इस काम को सघन अभियान के रूप में चलाना होगा. तभी जल संकट से मुक्ति मिल सकेगी, अन्यथा हर साल जल कष्ट का सामना करना पडेगा और हम जल की जगह आंसू बहाते रहेंगे|
'मोहन जोशी'