क्या नाम बदलने से मिलेगा वोट?
क्या नाम बदलने से मिलेगा वोट?
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इन दिनों देश में नाम बदलने की कवायद ज्यादा ही तेजी से चल रही है। पहले केंद्र सरकार ने कुछ स्टेशनों का नाम बदला, फिर सड़कों का और अब शहरों का।  इस मामले में हर राज्य से आगे उत्तर प्रदेश है। उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में अपने दो प्रमुख शहरों और उनके मंडलों के नाम बदलने को मंजूरी दे दी है। इसके तहत इलाहाबाद अब प्रयागराज बन गया है और फैजाबाद अयोध्या। यूं देखा जाए, तो नाम बदलने की यह कवायद ऐन चुनाव के मौके पर तेज होने के कुछ अलग ही अर्थ निकलते हैं। 

दरअसल, इन दिनों पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव और उसके बाद लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां चल रही हैं। इस वक्त जो भी चुनाव हो रहे हैं, उनमें किसी भी पार्टी के पास कोई ठोस मुद्दा नहीं है, जिसके आधार पर वह चुनावी मैदान में उतरे और वोटरों को लुभा सके। ऐसे में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस बीजेपी के हिंदुत्व के पांसे को अपने पाले में करने की कवायद कर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मंदिर—मंदिर घूमकर, जनेउ पहनकर यह साबित करने में जुटे हैं कि कांग्रेस हिंदुत्व विरोधी नहीं है। अब जब कांग्रेस हिंदुत्व का खेल खेल रही है, तो बीजेपी को यह डर सता रहा है कि उसका यह वोट बैंक खिसककर कहीं कांग्रेस के पाले में न चला जाए।  अब इस डर से निपटने के लिए उसने शहरों का नाम हिंदू करने का पांसा फेंका है। 

बीजेपी को लगता है कि उसका यह पांसा सही पड़ेगा और देश के प्रमुख शहरों का नाम हिंदुत्व करके या उनके पुराने नामों को वापस रखकर वह अपना यह वोट बैंक बचा पाएगी। फैजाबाद का नाम अयोध्या करना इसी वोट बैंक की राजनीति का एक हिस्सा है। दरअसल, इन दिनों हिंदुत्व के साथ ही राम मंदिर का जिन्न एक बार ​फिर बोतल से बाहर आकर खूब घमासान मचा रहा है। हर पार्टी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर राजनीति करने में लगी है। ऐसे में योगी सरकार ने फैजाबाद का नाम अयोध्या कर यह दर्शाने की कोशिश की है कि राम मंदिर निर्माण के लिए बीजेपी से बड़ा हितैषी और कोई नहीं है और बीजेपी हर हाल में अयोध्या में रामलला को स्थापित करना चाहती है, वह तो कोर्ट और दूसरी  पार्टियां  हैं, जो उसकी राह में रोड़े अटकाए हुए हैं। 

अब नाम बदलने की बीजेपी की यह कवायद आगामी चुनावों में मतदाताओं पर कितना असर डालती है? यह  तो आने वाला वक्त ही बताएगा। फिलहाल ​इतना तो तय है कि नाम बदलने की इस कवायद का न तो धर्म से कोई लेना—देना है और न ही इन राजनेताओं की चाहत हिंदुत्व को आगे बढ़ाने की है। यह तो केवल राजनीति के वोट बैंक का खेल है, जो हर पार्टी खेल रही है। 

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