नई दिल्ली : सदियों पहले जिस सरस्वती नदी के धरती पर बहने की बात की जाती रही, और अब उस नदी को लुप्त मानकर श्रद्धालु उसका पूजन करते हैं, इसके संगमों में स्नान करते हैं, वही सरस्वती नदी अब अस्तित्व में आ गई है। सरस्वती नदी के अस्तित्व में आने के बाद लोगों को खुशी हुई है वहीं वैज्ञानिक और शोध संस्थाऐं इस चमत्कार के तौर पर सामने आए सबूत को नदी का अस्तित्व मान रहे हैं।
कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के भू - विज्ञान विभाग के अध्यक्ष और भूगर्भशास्त्री डाॅ. एआर चौधरी ने बिलासपुर के गांव मुगलवाली का दौरा भी किया। इस दौरान उन्होंने बताया इस क्षेत्र में सरस्वती का चैनल है। हालांकि डेटिंग का काम बचा है लेकिन प्रारंभिक जांच में यहां निकलने वाला पानी सरस्वती नदी का प्रतीत होता है।
माना जा रहा है कि यहां से निकली जलधारा सरस्वती नदी में मिलती होगी। नासा के सैटेलाईट चित्रों से जानकारी मिली कि जैसलमेर क्षेत्र में विशेष तरीके से भूजल जमा हुआ है। उल्लेखनीय है कि सरस्वती नदी का वर्णन ऋगवेद में भी मिलता है। यह बहुत विशाल नदी थी। कहा जाता है कि 5000 वर्ष पूर्व यह नदी अपने समय से भी पहले लुप्त हो गई। माना जाता है कि यह नदी जमीन में 60 मीटर नीचे बहती है। दरअसल अमेरिकी सैटेलाईट लैंडसेट द्वारा डिजीटल तस्वीरें भेजी गईं।
जिसमें जैसलमेर के क्षेत्र में एक विशेष क्षेत्र में भूजल होने की जानकारी मिली। माना जा रहा है कि यहां पर किसी बड़ी नदी का क्षेत्र है। यही नहीं एक अंग्रेज विद्वान ने भारत और विलुप्त नदियों पर खोज की थी। उनकी खोज में भी भारत के राजस्थान क्षेत्र में नदी के भूमि के नीचे होने पर चर्चा की गई थी। यही नहीं जिस तरह से वेद में कहा गया है उसी तरह से उन्होंने भी दर्शाया था कि लैटिन, जर्मन, हिंदी आदि भाषाओं का विकास इंडोजर्मन से ही हुआ और संस्कृत सबसे प्राचीन भाषा थी।
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