बिना कथा श्रवण के नहीं मिलता संकष्टी चतुर्थी व्रत का फल
बिना कथा श्रवण के नहीं मिलता संकष्टी चतुर्थी व्रत का फल
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हर साल आने वाली संकष्टी चतुर्थी इस बार आज यानी 8 जून को है. ऐसे में कहते हैं संकष्टी चतुर्थी पर गणपति महाराज के आशीर्वाद से भक्तों के जीवन में चल रहे संकट दूर हो जाते हैं लेकिन व्रती को इस व्रत का फल तभी प्राप्त होता है जब वह संकष्टी चतुर्थी की कथा को सुनता है. जी हाँ, अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा.

पौराणिक कथा - भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के विवाह का निमंत्रण सभी देवी-देवताओं के पास गया. विवाह का निमंत्रण भगवान विष्णु जी की ओर से दिया गया था. बारात की तैयारी होने लगी. तभी सभी देवता बारात में जाने के लिए तैयार हो रहे थे, लेकिन सबने देखा कि गणेश जी इस शुभ अवसर पर उपस्थित नहीं है. यह चर्चा का विषय बन गया और वहां देवताओं ने भगवान विष्णु जी से इसका कारण पूछ लिया. कहा जाता है कि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के विवाह का निमंत्रण सभी देवी-देवताओं के पास गया. विवाह का निमंत्रण भगवान विष्णु जी की ओर से दिया गया था. बारात की तैयारी होने लगी. तभी सभी देवता बारात में जाने के लिए तैयार हो रहे थे, लेकिन सबने देखा कि गणेश जी इस शुभ अवसर पर उपस्थित नहीं है.

यह चर्चा का विषय बन गया और वहां देवताओं ने भगवान विष्णु जी से इसका कारण पूछ लिया.  यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी. जब गणेशजी वहां पहुंचे तो उन्हें घर की रखवाली करने को कह दिया गया. बारात चल दी, तब नारदजी ने देखा कि गणेशजी तो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं, तो वे गणेशजी के पास गए और रुकने का कारण पूछा. गणेशजी कहने लगे कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है. नारदजी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके रथ धरती में धंस जाएगा, तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा. 

यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी. जब गणेशजी वहां पहुंचे तो उन्हें घर की रखवाली करने को कह दिया गया. बारात चल दी, तब नारदजी ने देखा कि गणेशजी तो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं, तो वे गणेशजी के पास गए और रुकने का कारण पूछा. गणेशजी कहने लगे कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है. नारदजी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके रथ धरती में धंस जाएगा, तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा. ये सुनते ही गणपति महाराज ने अपनी मूषक सेना आगे भेज दी और सेना ने वैसा ही किया. जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए. सभी ने अपने-अपने उपाय किए, परंतु पहिए नहीं निकले, बल्कि जगह-जगह से टूट गए. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए. तब तो नारदजी ने कहा- आप लोगों ने गणेशजी का अपमान करके अच्छा नहीं किया. यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है.

शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेशजी को लेकर आए.  गणेशजी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया गया, तब कहीं रथ के पहिए निकले. अब रथ के पहिए निकल तो गए, लेकिन वे टूट-फूट गए, तो उन्हें सुधारे कौन? पास के खेत में खाती काम कर रहा था, उसे बुलाया गया. खाती अपना कार्य करने के पहले श्री गणेशाय नम: कहकर गणेशजी की वंदना मन ही मन करने लगा. देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया. तब खाती कहने लगा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी को नहीं मनाया होगा और न ही उनकी पूजन की होगी इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है. हम तो मूरख अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेशजी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं.  आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेशजी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेश की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा. ऐसा कहते हुए बारात वहां से चल दी और विष्णु भगवान का लक्ष्मीजी के साथ विवाह संपन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए. 

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