जैसा कि हम सभी को ज्ञात है कि हर महीने की कृष्ण और शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली चतुर्थी को ही संकष्टी चतुर्थी मानते हैं और इस साल यह चतुर्थी 15 नवंबर को है. जी दरअसल यह खास दिन बप्पा यानी भगवान गणेश का माना आजाता है और इस दिन गणपति की विशेष पूजा कर मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद माँगा जाता है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं संकष्टी चतुर्थी की वह कथा जो सभी को आज के दिन पढ़नी या सुननी चाहिए. आइए जानते हैं.
संकष्टी चतुर्थी कथा - एक दिन माता पार्वती नदी किनारे भगवान शिव के साथ बैठी थीं. उनको चोपड़ खेलने की इच्छा हुई, लेकिन उनके अलावा कोई तीसरा नहीं था, जो खेल में हार जीत का फैसला करे. ऐसे में माता पार्वती और शिव जी ने एक मिट्टी की मूर्ति में जान फूंक दी और उसे निर्णायक की भूमिका दी. खेल में माता पार्वती लगातार तीन से चार बार विजयी हुईं, लेकिन एक बार बालक ने गलती से माता पार्वती को हारा हुआ और भगवान शिव को विजयी घोषित कर दिया. इस पर पार्वती जी उससे क्रोधित हो गईं. क्रोधित पार्वती जी ने उसे बालक को लंगड़ा बना दिया. उसने माता से माफी मांगी, लेकिन उन्होंने कहा कि श्राप अब वापस नहीं लिया जा सकता, पर एक उपाय है. संकष्टी के दिन यहां पर कुछ कन्याएं पूजन के लिए आती हैं, उनसे व्रत और पूजा की विधि पूछना. तुम भी वैसे ही व्रत और पूजा करना. माता पार्वती के कहे अनुसार उसने वैसा ही किया. उसकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान गणेश उसके संकटों को दूर कर देते हैं.
गणेश जी की आरती -
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा.
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा..
एकदंत, दयावन्त, चार भुजाधारी,
माथे सिन्दूर सोहे, मूस की सवारी.
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा.. ..
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा.
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा..
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया,
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया.
'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा..
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ..
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा.
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी.
कामना को पूर्ण करो जय बलिहारी.
अगर सालों से है मन में कोई इच्छा तो करें रुद्राष्टक स्त्रोत का पाठ, तुरंत होगी पूरी