अब सेनेटरी नैपकिन से नहीं फैलेगी गन्दगी, देश की बेटियों ने निकाली नई तकनीक
अब सेनेटरी नैपकिन से नहीं फैलेगी गन्दगी, देश की बेटियों ने निकाली नई तकनीक
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सेनेटरी नैपकिन के कारण मिट्टी और जमीन बहुत ज्यादा प्रदूषित होती है लेकिन अब भारत की बेटियों ने ऐसी तकनीक निकाल ली है जिसके जरिए सेनेटरी नेपकिन से होने वाली गन्दगी को खत्म किया जा सकता है. इंजीनियरिंग की छात्राओं ने नैपकिन को गलने की एक नई तकनीक निकाली है. इस तकनीक के जरिए सेनेटरी नैपकिन को राख बना दिया जाएगा और फिर उसे बेचा जाएगा. खास बात तो ये है कि इस राख को लोहे की सफाई करने में इस्तेमाल किया जाएगा. इस तकनीक के जरिए प्रदुषण में तो कमी आएगी ही और इसके साथ ही मिट्टी के बर्तन बनाने वाले लोगों को रोजगार के भी अवसर मिलेंगे.

इंदिरा गांधी दिल्ली तकनीकी महिला विश्वविद्यालय की बीटेक की 36 छात्राओं की टीम ने सामाजिक सरोकार में यह तकनीक तैयार की है. इस नई तकनीक का निर्माण करने वाली लड़कियों की टीम के मुताबिक 'मासिक धर्म के दौरान लड़कियों और महिलाओं को अपनी सेहत को स्वस्थ रखने के लिए सेनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करना बहुत जरुरी है. मार्केट में मिलने वाले सेनेटरी नैपकिन जमीन में जाकर गलते नहीं है क्योकि वो बायोडिग्रेडिबल नहीं है. इसके कारण जमीन प्रदूषित होती है और नालियों में रुकावट और नदियों में मछली या अन्य जीवों की मौत का कारण बनती है. इसलिए उन्होंने इस सेनेटरी नैपकिन को खत्म करने के लिए टेराकोटा, सीमेंट व क्ले से एक बड़ा सा गमले की शेप का डस्टबिन तैयार किया गया है जो 400 डिग्री तापमान में भी काम कर सकता है.'

उन्होंने अपनी बातचीत में आगे बताया कि 'इस गमले के अंदर स्टील की एक प्लेट लगी है और इसी में एक्टीवेटेड कार्बन फिल्टर भी लगाया गया है. सेनेटरी नैपकिन को इस डस्टबिन में डालकर इसमें साइड से आग लगा दी जाएगी. सेनेटरी नैपकिन के जलने से डाइऑक्सिन और फ्यूरी जैसा दो प्रकार का केमिकल धुआँ बनकर निकलेगा. इस धुएं को एक्टिवेटेड कार्बन फिल्टर सोख लेगा और आखिरी में जो राख बचेगी उसे मेटल क्लीनर और ग्लास में प्रयोग करने वाली कंपनी को बेच दिया जाएगा. इस राख को 80 रुपये प्रति 100 ग्राम के हिसाब से बेचा जाएगा. फ़िलहाल तो दिल्ली में चार स्थानों पर यह प्रोजेक्ट सफल रहा और अब जल्द ही इस तकनीक को पेटेंट करवाने के लिए आवेदन दिया जाएगा. इस तकनीक में इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के गमले के लिए कुम्हार को करीब 3500 रूपए दिए जाएंगे और इस पूरी तकनीक को तैयार करने में करीब 5 हजार रूपए का खर्चा आएगा.

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