नई दिल्ली : देश में सांप्रदायिक उपद्रव होने और लेखकों का विरोध होने के बाद साहित्यकारों ने अपने पुरस्कार लौटाने प्रारंभ कर दिए हैं। इस दौरान कई अंतर्राष्ट्रीय स्तर के लेखक भी विरोध करने उतर आए हैं। बुकर पुरस्कार से सम्मानित लेखक सलमान रूश्दी ने कहा है कि सांप्रदायिकता के जहर के प्रसार और देश में बढ़ती असहिष्णुता के विरूद्ध लेखकों के बढ़ते विरोध प्रदर्शन में वे शामिल हो गए। इस दौरान सोमवार को 12 लेखकों ने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का निर्णय लिया। हालांकि इस मसले पर कुछ लेखकों ने इस तरह से पुरस्कार लौटाए जाने को सही नहीं ठहराया है। उनका कहना है कि इस तरह का विरोध ठीक नहीं है।
लोकप्रिय लेखक चेतन भगत ने कहा कि क्या आपके पुरस्कार लौटाने से यह मसला हल हो जाएगा। सलमान रूश्दी ने इस मसले पर ट्वीट कर कहा कि मैं नयनतारा सहगल और दूसरे अन्य लेखकों के विरोध प्रदर्शन का समर्थन करता हूॅं। भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरनाक समय है। उन्होंने कहा कि इस तरह की आवाज उठाने पर लेखकों और अंधविश्वास विरोधी कार्यकर्ताओं पर हमले किए गए। उन्होंने कहा कि साहित्य अकादमी के समर्थन में वे अपना विरोध दर्ज कर रहे हैं।
कश्मीरी लेखक गुलाम नबी खयाल द्वारा यह भी कहा गया कि वे अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस कर रहे हैं। इसी के साथ रहमान अब्बास, कन्नड़ लेखक और अनुवादक श्रीनाथ डीएन द्वारा भी अपने पुरस्कार लौटा दिए गए। इतना ही नहीं रंगमंच कलाकार माया कृष्ण राव ने भी दादरी हत्याकांड को लेकर अपना सम्मान लौटा दिया है। पंजाब के चार लेखक और कवि सुरजीत पत्तर, बलदेव सिंह सडकनामा, जसविंदर और दर्शन बट्टर सांप्रदायिक हिंसा के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि विरोध के चलते वे अपना पुरस्कार लौटा रहे हैं। साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि संस्थान के संविधान में वर्णित धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को लेकर वे प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने पुरस्कार लौटाने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और वे डरे हुए हैं।