हर साल आने वाली सकट चौथ आज यानी 23 मार्च को है. ऐसे में यह व्रत सभी संकटों से उबरने का व्रत माना जाता है. कहा जाता है माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सकट चौथ के रूप में मनाया जाता है और इस दिन कई उपाय, पूजा की जा सकती है. आज हम आपको इस व्रत की एक ऐसी कथा बताने जा रहे हैं जिसके कारण गणेश चतुर्थी का व्रत शुरू हुआ था और इस व्रत को करने से फल मिलने लगे थे. आइए जानते हैं.
व्रत की कथा - मां पार्वती एकबार स्नान करने गईं. स्नानघर के बाहर उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को खड़ा कर दिया और उन्हें रखवाली का आदेश देते हुए कहा कि जब तक मैं स्नान कर खुद बाहर न आऊं किसी को भीतर आने की इजाजत मत देना. गणेश जी अपनी मां की बात मानते हुए बाहर पहरा देने लगे. उसी समय भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आए लेकिन गणेश भगवान ने उन्हें दरवाजे पर ही कुछ देर रुकने के लिए कहा. भगवान शिव ने इस बात से बेहद आहत और अपमानित महसूस किया.
गुस्से में उन्होंने गणेश भगवान पर त्रिशूल का वार किया, जिससे उनकी गर्दन दूर जा गिरी. जब माता पार्वती बाहर आईं तो देखा कि गणेश जी की गर्दन कटी हुई है. ये देखकर वो रोने लगीं और उन्होंने शिवजी से कहा कि गणेश जी के प्राण फिर से वापस कर दें. इसपर शिवजी ने एक हाथी का सिर लेकर गणेश जी को लगा दिया. इस तरह से गणेश भगवान को दूसरा जीवन मिला. तभी से गणेश की हाथी की तरह सूंड होने लगी. तभी से महिलाएं बच्चों की सलामती के लिए माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगीं.
इस वजह से भगवान गणेश बने थे स्त्री, जानिए पौराणिक कथा