'नियम कल्याण के लिए, वसूली के लिए नहीं', गुजारा भत्ता को लेकर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

'नियम कल्याण के लिए, वसूली के लिए नहीं', गुजारा भत्ता को लेकर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान शादी टूटने के बाद पति द्वारा दिए जाने वाले गुजारा भत्ता पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। अदालत ने वैवाहिक मामलों में गुजारा भत्ता मांगने की प्रवृत्ति पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि महिलाएं अपने पूर्व पति से उसके मौजूदा जीवन स्तर के अनुसार भत्ता की उम्मीद नहीं कर सकतीं। अदालत ने यह कहा कि ये कानून महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने एवं उनकी जीवन स्थिति में सुधार के लिए हैं, न कि उनके पतियों को परेशान करने, धमकाने या उनसे जबरन वसूली करने के साधन।

पुलिस और ट्रायल कोर्ट की भूमिका पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस और निचली अदालतों के व्यवहार की आलोचना की। बेंच ने कहा कि पुलिस अक्सर जल्दबाजी में कार्रवाई करते हुए पति और उसके रिश्तेदारों, जिनमें बुजुर्ग और अस्वस्थ माता-पिता भी शामिल होते हैं, को गिरफ्तार कर लेती है। इसके अलावा, ट्रायल कोर्ट एफआईआर में 'अपराध की गंभीरता' का हवाला देकर आरोपियों को जमानत देने से इनकार कर देती है।

गुजारा भत्ता का उद्देश्य
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि गुजारा भत्ता पति-पत्नी की वित्तीय स्थिति को बराबर करने के लिए नहीं है। इसका मकसद सिर्फ इस बात को सुनिश्चित करना है कि महिला को एक सम्मानजनक और उचित जीवन स्तर मिल सके। अदालत ने यह निर्णय देते हुए कहा कि पूर्व पति अपनी वर्तमान वित्तीय स्थिति के आधार पर अनिश्चितकाल तक अपनी पूर्व पत्नी का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य नहीं हो सकता है।

हिंदू विवाह पर SC
सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू विवाह को एक पवित्र संस्था बताते हुए कहा कि यह परिवार की नींव है, न कि कोई “व्यावसायिक उद्यम।” अदालत ने टिप्पणी की कि विवाह जैसे पवित्र संबंध को आर्थिक लेन-देन या वाणिज्यिक दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति पंकज मीठा की पीठ ने कहा, “महिलाओं को यह समझना चाहिए कि उनके लिए बनाए गए ये कड़े कानून उनके कल्याण के उद्देश्य से हैं। इन्हें पतियों के खिलाफ हथियार के रूप में उपयोग करना, न केवल कानून की मूल भावना के खिलाफ है, बल्कि यह समाज के पारिवारिक ढांचे को भी कमजोर करता है।”

क्या है मामला?
यह फैसला एक ऐसे मामले में आया, जिसमें अदालत ने एक अलग हो चुके दंपति के विवाह को समाप्त कर दिया। अदालत ने इस विवाह को “पूरी तरह से टूट चुका” करार दिया और पति को आदेश दिया कि वह अपनी अलग हो चुकी पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में 12 करोड़ रुपये का भुगतान करे। इस रकम का भुगतान एक महीने के भीतर करने का निर्देश दिया गया।

पत्नी का पक्ष
पत्नी ने कोर्ट में दावा किया कि उसके अलग हो चुके पति की कुल संपत्ति 5,000 करोड़ रुपये से अधिक है। उसने यह भी कहा कि उसके पति के पास भारत और अमेरिका में कई व्यवसाय और संपत्तियां हैं। इसके अतिरिक्त, पत्नी ने अदालत को यह जानकारी दी कि पति ने अपनी पहली पत्नी को तलाक के समय 500 करोड़ रुपये का भुगतान किया था।

संपत्ति के समानीकरण की मांग पर टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता के लिए पति की संपत्ति, स्थिति और आय के बराबर राशि मांगने की प्रवृत्ति पर कड़ा रुख अपनाया। कोर्ट ने कहा, "यदि पति अलगाव के बाद किसी दुर्भाग्यवश आर्थिक संकट में आ जाए, तो क्या पत्नी संपत्ति समानीकरण की अपनी मांग छोड़ने को तैयार होगी?"

इस मामले में पत्नी ने पति के खिलाफ कई आपराधिक मामले भी दर्ज कराए थे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इन आपराधिक मामलों को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में अगर महिला द्वारा कानून का दुरुपयोग किया जाता है, तो यह न केवल कानून की भावना के खिलाफ है, बल्कि यह न्याय प्रणाली के दुरुपयोग का भी उदाहरण है।

 

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