प्रकृति की गोद में बसा महाबलेश्वर। चारों ओर खूबसूरत पहाड़, हरियाली और बहते हुए निर्झर झरने। यहां आते ही लगता है जैसे सदा यहीं बस जाऐं। प्रकृति यहां अपनी अप्रतीम सुंदरता में नज़र आती है। प्रकृति की इसी सुंदरता के साथ यहां प्रतिष्ठापित है स्वयंभू शिव लिंग। इस शिवलिंग को महाबलेश्वर कहा जाता है। जी हां जिसका अर्थ होता है महान बल धारण किया हुआ। जो अतिबलशाली हो। यहां शिवलिंग रूद्राक्ष स्वरूप में प्रतिष्ठापित है। दरअसल यहां जिस शिवलिंग का पूजन होता है वह रूद्राक्ष की तरह छोटे - छोटे छिद्रों वाला है। जिसे देखने पर रूद्राक्ष की अनुभूति होती है। इसलिए इसे शिव का उपहार कहा जाता है। रूद्राक्ष जिसमें शिव की साक्षात् शक्ति हो। 16 वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर राजा चंद्रराव ने बनवाया। मंदिर में विशाल नंदी बैल विराजमान हैं।
मान्यता है कि शिव जी ने यहां महाबल और अतिबल नाम दो राक्षसों का संहार किया था। इसलिए शिव जी यहां महाबली अर्थात् महाबलेश्वर कहलाए। यह मंदिर कृष्णा, कोयना, वेणा, सावित्री और गायत्री नदियों के संगम के समीप प्रतिष्ठापित है, इन नदियों को पंचगंगा कहा जाता है। यहां संगम में स्नान करने और शिव जी का पूजन करने से जन्मजन्मातंर का पुण्य मिलता है। श्रावण मास में और सोमवार के अलावा अक्टॅबर से जून तक यहां श्रद्धालुओं का विशेष जमावड़ा रहता है। महाशिवरात्रि पर भी यहां दर्शनों के लिए श्रद्धालु उमड़ते हैं।