style="text-align: justify;">नई दिल्ली : यूं तो दुनिया की सबसे उंची चोटी और हिमालय की बर्फीली वादियों का विचरण करने का हर किसी का मन करता है। हर ओर बिछी बर्फ की
सफेद चादर और धवल बादल को छूते नज़र आते श्वेत पहाड़ों से जब बर्फ की स्टीम निकलती और और उस पर सूर्य की रोशनी पड़ती है तो नज़ारा बेहद
अद्भुत रहता है। मगर जब इन्हीं पहाड़ों के आसपास जिंदगी बेहद अकेली और असहाय हो जाए तो क्या कहा जाए।
ऐसा ही एक अनुभव विश्व के इस दुर्गम स्थल की यात्रा करने वाले उत्तरप्रदेश पुलिस के जवानों को हुआ। माउंट एवरेस्ट पर ध्वज फहराने की चाहत में
जवानों के पग आग बढ़े तो सही लेकिन अचानक सतह हिलने से सभी का संतुलन बिगड़ने लगा। जवानों ने एक दूसरे को संभावला मगर आंखों के सामने का
मंज़र बेहद भयावह था।
एवरेस्ट पर पहुंचने का सपना लेकर जवानों का दल 6 अप्रैल को दिल्ली से काठमांडू की ओर निकला जहां उन्होंने आवश्यक दिशा निर्देश प्राप्त किए। अब दल
9 अप्रैल को एवरेस्ट की ओर बढ़ा। दल ने अपने साथ एक गाईड भी रखा।
19 सदस्यीय इस दल ने 23 अप्रैल को 5500 मीटर की उंचाई तय की। यहां
उन्होंने बेस केंप में आराम किया और फिर आगे की ओर बढ़ गए। जिसके बाद 25 अप्रैल को 6400 मीटर की उंचाई तक पहुंचा। पर्वतारोही पुलिस जवानों के
दल में शामिल अपर्णा कुमार ने कहा कि बेस केंप पर आराम करने के दौरान उन्हें अपने आसपास सभी कुछ हिलता हुआ अनुभव हुआ। सभी सदस्यों ने आपस
में चर्चा की और वे बेस केंप चले गए।
सदस्यों को एवरेस्ट देर तक हिलता हुआ दिखाई दिया। आसपास हिमस्खलन हो रहा था। चट्टानें गिरकर टूट रही थीं
और इनकी आवाज़ें बेहद डरावनी थीं। सभी सदस्यों ने वहीं रूकना उचित समझा। सेटेलाईट फोन का संपर्क टूट गया। बाहर माईनस 20 डिग्री सेल्सियस के
तापमान पर पहुंच गया। रातभर दल खुले आसमान के नीचे रहा। सुबह सभी बेस केंप की ओर रवाना हुए और उन्होंने अपने पति संजय कुमार से सैटेलाईट
फोन से चर्चा की। इसके बाद उन्होंने अन्य अधिकारियों से चर्चा की। भूकंप की जानकारी मिलने के बाद सभी ने निश्चय किया कि अभी एक सप्ताह तक सभी
यहीं रूकेंगे।