यहाँ जानिए ऋषि पंचमी व्रत की कथा
यहाँ जानिए ऋषि पंचमी व्रत की कथा
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आप सभी को बता दें कि हिंदू धर्म में त्योहार की दृष्टि से भादो का माह काफी महत्वपूर्ण है.. ऐसे में जन्माष्टमी, हरतालिका तीज और गणेश चतुर्थी जैसे मुख्य त्योहार भी इसी माह में पड़ते हैं और इसी के साथ भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी का पर्व मनाया जाता है. आपको बता दें कि धार्मिक दृष्टि से यह त्यौहार काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. वहीं इस साल ऋषि पंचमी 3 सिंतबर यानी आज मनाया जा रहा है. आपको बता दें कि इस व्रत से जुडी एक बहुत ही पुराणी कथा है जिसे आज के दिन सूना जाता है. तो आइए जानते हैं वह कथा.

ऋषि पंचमी व्रत की कथा - काफी समय पहले विदर्भ नामक एक ब्राह्मण अपने परिवार के साथ रहते थे, उनके परिवार में एक पत्नी, पुत्र और एक पुत्री थी. ब्राह्मण ने अपनी पुत्री का विवाह एक अच्छे ब्राह्मण कुल में किया लेकिन दुर्भाग्यवश उसकी पुत्री के पति की अकाल मृत्यु हो गई, जिसके बाद उसकी विधवा बेटी अपने घर वापस आकर रहने लगी. एक दिन अचानक से मध्यरात्रि में विधवा के शरीर में कीड़े पड़ने लगे जिसके चलते उसका स्वास्थ्य गिरने लगा. पुत्री को ऐसे हाल में देखकर ब्राह्मण उसे एक ऋषि के पास ले गए. ऋषि ने बताया कि कन्या पूर्व जन्म में ब्राह्मणी थी और इसने एक बार रजस्वला होने पर भी घर के बर्तन छू लिए और काम करने लगी. बस इसी पाप की वजह से इसके शरीर में कीड़े पड़ गए हैं चूंकि शास्त्रों में रजस्वला स्त्री का कार्य करना वर्जित होता है लेकिन ब्राह्मण की पुत्री ने इस बात का पालन नहीं किया जिस कारण उसे इस जन्म में दंड भोगना पड़ रहा है.

ऋषि कहते हैं कि अगर वह कन्या ऋषि पंचमी का पूजा-व्रत पूरे श्रद्धा भाव के साथ करते हुए क्षमा प्रार्थना करें तो उसे अपने पापों से मुक्ति मिल जाएगी. कन्या ने ऋषि के कहे अनुसार विधिविधान से पूजा और व्रत किया तब उसे अपने पूर्वजन्म के पापों से छुटकारा मिला. इस प्रकार विधवा कन्या के समान ऋषि पंचमी का व्रत करने से समस्त पापों का नाश होता है.

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