साहित्य, अवार्ड और विवाद...बात फ्रीडम ऑफ़ स्पीच की
साहित्य, अवार्ड और विवाद...बात फ्रीडम ऑफ़ स्पीच की
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शुरुवात से पहले एक परिचय, साहित्य अकादमी अवार्ड की- यह वह सर्वोच्च सम्मान है जो लेखनी के धनी व्यक्ति को भारत सरकार द्वारा दी जाती है| इसमें शिला पटट के साथ एक लाख रुपये दिए जाते है| इन दिनों यह अवार्ड चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि अवार्ड विनर इसे सरकार को वापस लौटा रहे है|

सम्मान लौटाने की शुरूवात नयनतारा सहगल (विजय लक्ष्मी पंडित की बेटी) ने की, जिसका कारण समाज में बढ़ती सांप्रदायिक विषमता और मुख्य रूप से दादरी मामला बताया जा रहा है| स्वर बुलंद हुए तो समर्थन में कई अवार्डी (लगभग 23) और भी जुड़ गए और स्वर गुंजन करने लगे| बुकर पुरस्कार विजेता सलमान रुश्दी भी साथ हो लिए| इसी कड़ी साहित्य अकादमी से सम्बन्धी ट्वीट कर चेतन भगत ने इसे व्यर्थ बताया है| उनका मानना है की इससे कुछ नहीं होगा| अवार्ड की यादें दिल में ज़िंदा रहेंगी|

सवाल यह है की यह किसी नेता या अभिनेता के स्वर तो है नहीं, न ही किसी धर्म विशेष का | इनका एक ही धर्म है साहित्य की पूजा | अवार्ड लौटाने वालों में चार सिख भी  है ,मुस्लिम भी है, कन्नड़ , गुजराती सभी है| कलबुर्गी मामले को एक चिंगारी के ज़रिए समर्थन देने वाली सहगल अपनी कला में माहिर है, उनकी कला का नमूना कुछ यु है की उन्होंने अपने प्रेमी को १ साल में छः हज़ार खत लिखे थे |

इरादा बिल्कुल साफ़ है समाज में फ़ैल रही दुर्भावना को रोकना और आम आदमी की मन की आवाज़ को बुलंद करना ताकि वो गेहूं के घुन की तरह ना पिसे | पर हमारे राजनेता भी अपनी बयानबाजी की कला के  माहिर खिलाडी  है, ऐसे कैसे चुप रह जाते | केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने कहा है की यह उनकी अपनी पसंद है हमें कोई ऐतराज़ नहीं है और साथ ही लिखने की भी मनाही का ज्ञान दे दिया | आनन-फानन में अकादमी के एग्जीक्यूटिव ने भी 23 अक्टूबर को इमरजेंसी मीटिंग बुलाई है | 

अंजाम जो भी हो, सम्मान और लेखक की गरिमा बनी रहे | आखिर आने वाली पीढ़ी के पास भी कुछ समृद्ध लेखन का नमूना हो जिसे वो पढ़कर खुद को गौरवान्वित महसूस कराये |

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