हिन्दु परम्परा में मस्तक पर तिलक लगाना शूभ माना जाता है. इसे सात्विकता का प्रतीक माना जाता है . विजयश्री प्राप्त करने के उद्देश्य रोली, हल्दी, चन्दन या फिर कुम्कुम का तिलक महत्ता को ध्यान में रखकर, इसी प्रकार शुभकामनाओं के रुप में हमारे तीर्थस्थानों पर, विभिन्न पर्वो-त्यौहारों, विशेष अतिथि आगमन पर आवाजाही के उद्देश्य से भी लगाया जाता है .
चन्दन दो प्रकार के होते है -
हरि चन्दन - पद्मपुराण के अनुसार तुलसी के काष्ठ को घिसकर उसमें कपूर, अररू या केसर के मिलाने से हरिचन्दन बनता है.
गोपीचन्दन- गोपीचन्दन द्वारका के पास स्थित गोपी सरोवर की रज है, जिसे वैष्णवों में परम पवित्र माना जाता है .
ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार तिलक में "अंगुठे के प्रयोग से - शक्ति, मध्यमा के प्रयोग से - दीर्घायु, अनामिका के प्रयोग से- समृद्धि तथा तर्जनी से लगाने पर - मुक्ति प्राप्त होती है" तिलक विज्ञान के अनुसार तिलक लगाने में नाखून स्पर्श तथा लगे तिलक को पौंछना अनिष्टकारी बतलाते हैं.
तिलक के मध्य में चावल लगाये जाते हैं तिलक के चावल शिव के परिचायक हैं शिव कल्याण के देवता हैं जिनका वर्ण शुक्ल है लाल तिलक पर सफेद चावल धारण कर हम जीवन में शिव व शक्ति के साम्य का आशीर्वाद ग्रहण करते हैं. इच्छा और क्रिया के साथ ज्ञान का समावेश हो सफेद गोपी चन्दन तथा लाल बिन्दु इसी सत्य के साम्य का सूचक है. शव के मस्तक पर रोली तिलक के मध्य चावल नहीं लगाते, क्योंकि शव में शिव तत्त्व तिरोहित है .वहाँ शिव शक्ति साम्य की मंगल कामना का कोई अर्थ ही नहीं है.