शास्त्रों के मुताबिक देव उपासना दोषरहित होने पर शीघ्र और मनचाहा फल देती है. इसलिए देव दोष से बचने के लिए दुर्गासप्तशती का पाठ भी किसी विद्वान और गुणी ब्राह्मण से धार्मिक विधि-विधान के साथ कराएं या जरूरी जानकारी लेकर स्वयं करे. अगर देवी भक्त स्वयं दुर्गासप्तशती का पाठ करता है, तो शास्त्रोक्त बातों के अलावा यहां बताई जा रही कुछ सरल व्यावहारिक बातों का भी जरूर ध्यान रखे, ताकि देव दोष से बचा जा सके -
1-दुर्गासप्तशती का पाठ पुस्तक से ही करें. बोलकर पाठ तभी करें, जब यह पक्का हो कि शब्द और उच्चारण दोषरहित है.
2-दुर्गासप्तशती का पाठ हाथ या गोद में लेकर करना दोष माना जाता है. इसलिए किसी चौकी पर पुस्तक रख कर ही पाठ करना फल प्राप्ति की दृष्टि से श्रेष्ठ माना गया है.
3-दुर्गासप्तशती का पाठ हमेशा धीमी आवाज के साथ समान गति से करें. मन ही मन पाठ दोषपूर्ण माना गया है.
4-दुर्गासप्तशती के सभी देवी चरित्रों का पूरा पाठ करें. चरित्रों का अधूरा पाठ, शब्द या वाक्य दोष कामना और कामनासिद्धि में बाधक माने गए हैं.
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