Oct 22 2015 05:16 PM
आज दशहरा है यानी आज हम रावण का दहन कर अधर्म पर धर्म की विजय का सन्देश सभी के बीच फ़ैलाने का काम करने वाले है. लेकिन क्या हमारे अंदर का रावण कभी हम जला पाएंगे. कहीं ना कहीं हम सभी के मन में एक रावण है जो आज उस एकमात्र लंकेश के आगे बहुत ज्यादा खतरनाक हो चूका है. एक वह रावण था जिसमे कहीं बुराई थी तो कहीं उसकी प्रतिष्ठा भी थी. लेकिन बात करें आज के युग की तो आज तो हे कोई रावण है. लालसा से भरे हुए रावण. आज हर किसी मोड़ पर बहुत लड़कियां सुरक्षति महसूस नहीं करती है, क्यों ?
शायद हमारे अंदर का रावण आज उन्हें सुरक्षित नहीं होने देता है. आज देश में दूसरी तरफ भ्रष्टाचार भी बढ़ गया है, इसमें भी कही ना कही हमारे अंदर का रावण ही है जो हमे इसके लिए कही ना कही रावण बना देता है. हम हर साल एक रावण को जलाते है लेकिन फिर दूसरे साल हम एक और रावण लेकर खड़े हो जाते है. तो क्यों ना ऐसा हो जाये कि हम हमारे अंदर के रावण को भी जला दे. लेकिन फिर किसी रावण को हमारे अंदर अगले साल के लिए पैदा होने को ना छोड़े.
हितेश सोनगरा
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