कुछ ऐसी थी 'म​हारानी लक्ष्मीबाई' की अतिंम क्षणो की कहानी,पढ़कर हो जाएंगे रोगटे खड़े
कुछ ऐसी थी 'म​हारानी लक्ष्मीबाई' की अतिंम क्षणो की कहानी,पढ़कर हो जाएंगे रोगटे खड़े
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भारत की सबसे शक्तिशाली महिला में से एक महारानी लक्ष्मी बाई को कौन नही जानता है. उनकी वीरता और शौर्य से हर कोई भली भाति परिचित है वे स्वतंत्रता संग्राम की उन महानायको मे से एक है जिन्होने अंग्रजो के सामने घुटने नही टेके बल्कि उनका सामना किया और वीरगति को प्राप्त हुई. आज 17 जून उनकी पुन्यतिथि के अवसर पर हम उनके जीवन के आखरी क्षणो को कहानी के रूप में आपके सामने प्रस्तुत करने जा रहे है.

एंटोनिया फ़्रेज़र अपनी पुस्तक, 'द वॉरियर क्वीन' में लिखती हैं, "तब तक एक अंग्रेज़ रानी के घोड़े की बगल में पहुंच चुका था. उसने रानी पर वार करने के लिए अपनी तलवार ऊपर उठाई. रानी ने भी उसका वार रोकने के लिए दाहिने हाथ में पकड़ी अपनी तलवार ऊपर की. उस अंग्रेज़ की तलवार उनके सिर पर इतनी तेज़ी से लगी कि उनका माथा फट गया और वो उसमें निकलने वाले ख़ून से लगभग अंधी हो गईं."

तब भी रानी ने अपनी पूरी ताकत लगा कर उस अंग्रेज़ सैनिक पर जवाबी वार किया. लेकिन वो सिर्फ़ उसके कंधे को ही घायल कर पाई. रानी घोड़े से नीचे गिर गईं.तभी उनके एक सैनिक ने अपने घोड़े से कूद कर उन्हें अपने हाथों में उठा लिया और पास के एक मंदिर में ले लाया. रानी तब तक जीवित थीं.मंदिर के पुजारी ने उनके सूखे हुए होठों को एक बोतल में रखा गंगा जल लगा कर तर किया. रानी बहुत बुरी हालत में थीं. धीरे-धीरे वो अपने होश खो रही थीं.उधर, मंदिर के अहाते के बाहर लगातार फ़ायरिंग चल रही थी. अंतिम सैनिक को मारने के बाद अंग्रेज़ सैनिक समझे कि उन्होंने अपना काम पूरा कर दिया है.


तभी रॉड्रिक ने ज़ोर से चिल्ला कर कहा, "वो लोग मंदिर के अंदर गए हैं. उन पर हमला करो. रानी अभी भी ज़िंदा है."उधर, पुजारियों ने रानी के लिए अंतिम प्रार्थना करनी शुरू कर दी थी. रानी की एक आँख अंग्रेज़ सैनिक की कटार से लगी चोट के कारण बंद थी.उन्होंने बहुत मुश्किल से अपनी दूसरी आँख खोली. उन्हें सब कुछ धुंधला दिखाई दे रहा था और उनके मुंह से रुक-रुक कर शब्द निकल रहे थे, "....दामोदर... मैं उसे तुम्हारी... देखरेख में छोड़ती हूँ... उसे छावनी ले जाओ... दौड़ो उसे ले जाओ."बहुत मुश्किल से उन्होंने अपने गले से मोतियों का हार निकालने की कोशिश की. लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाई और फिर बेहोश हो गईं.मंदिर के पुजारी ने उनके गले से हार उतार कर उनके एक अंगरक्षक के हाथ में रख दिया, "इसे रखो... दामोदर के लिए."रानी की साँसे तेज़ी से चलने लगी थीं. उनकी चोट से ख़ून निकल कर उनके फेफड़ों में घुस रहा था. धीरे-धीरे वो डूबने लगी थीं. अचानक जैसे उनमें फिर से जान आ गई.वो बोलीं, "अंग्रेज़ों को मेरा शरीर नहीं मिलना चाहिए." ये कहते ही उनका सिर एक ओर लुड़क गया. उनकी साँसों में एक और झटका आया और फिर सब कुछ शांत हो गया. इस प्रकार एक महान रानी का नाम इतिहास के पन्नो मे अमर हो गया.

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