विलुप्त होती रामलीला को बचाने की मुहिम
विलुप्त होती रामलीला को बचाने की मुहिम
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कई वर्षो पहले जब भारत डिजिटल इंडिया नहीं हुआ था, तब मनोरंजन का साधन नाच, गम्मत, रामलीला व रासलीला हुआ करती थी। लेकिन छत्तीसगढ़ में रामलीला अब विलुप्त होती जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी कुछ जगह इसके बदले 'नाचा' होता है।

रामलीला कलाकारों के सामने भूखों मरने की नौबत आ गई है, फिर भी कुछ लोग अपने जोश व जुनून के कारण विलुप्त होती इस नाट्यकला को आज भी जीवित रखे हुए हैं। इसी तारतम्य में वर्षो बाद छत्तीसगढ़ के कवर्धा में ऐसे ही कलाकार मध्य प्रदेश से आए हुए हैं, जो विलुप्त होती इस नाट्यकला के माध्यम से लोगों का मनोरंजन कर अपने पेट की आग बुझा रहे हैं।

मध्य प्रदेश के रीवा जिले के सोनौरी गांव के कलाकार सूबे के कवर्धा जिला मुख्यालय में बूढ़ामहादेव मंदिर के समीप नवरात्रि पर्व के पहले दिन से ही रामलीला का मंचन शुरू किया गया जो कि दशहरे के अगले दिन तक चला। वर्षो बाद हुए ऐसे आयोजन से नगरवासियों में अपार खुशी है। 

साहित्य व संस्कृति से जुड़े कलाकार अपनी जीवंत प्रस्तुति देकर वाहवाही लूटने में सफल रहे। आज ऐसा समय है कि हर किसी के पास टीवी है और इसमें रामायण, महाभारत व अन्य धार्मिक कार्यक्रम देख सकते हैं। फिर भी रामलीला का मंचन देखने वालों की संख्या ज्यादा रही।

मंडली के सदस्य गंगापुरी गोस्वामी ने बताया कि देशभर में धर्म कथा समाप्त होती जा रही है। इसको कायम रखने के लिए मंडली बनाई गई है, जिसके द्वारा रामायण व धर्म का प्रचार कर लोगों को जोड़ना उद्देश्य है। धर्म के नाम पर लोगों में हिंसा की भावना बढ़ती जा रही है। इसे रोकने का प्रयास किया जा रहा है। 

सोनौरी क्षेत्र में वर्ष 2000 में रामलीला कमेटी बनाई गई थी। इसमें 21 लोगों की टोली है जो लोगों का नि:शुल्क मनोरंजन कर रहे हैं। यह टोली प्रदेश के शिवनी, जबलपुर, खंडवा व मंडला के अलावा ओडिशा के अमरकंटक तथा गुजरात और महाराष्ट्र के कई जिलों में सैकड़ों स्थानों पर प्रस्तुति दे चुकी है। 

मंडली में 21 सदस्य हैं। इनमें से 11 सदस्य कवर्धा पहुंचे। इनमें अनिल तिवारी, कृष्णानंद महाराज, गंगापुरी गोस्वामी, विनय तिवारी, लखन तिवारी, ढोलक मास्टर राजाराम, दिलीप मिश्रा, रामावतार व अन्य शामिल हैं। 

गंगापुरी ने बताया कि उनकी मंडली नि:शुल्क कार्यक्रम प्रस्तुत करती है। श्रोता जो भी दान-दक्षिणा देते हैं, उसी से वे परिवार का भरण-पोषण करते हैं। पूरे 12 माह तक अलग-अलग स्थानों पर ऐसे ही कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि रामलीला विलुप्त होती जा रही है। इसे कायम रखने के लिए यह आयोजन देशभर में किया जाता है। बड़े दिनों बाद यहां इस तरह का आयोजन होना स्थानीय लोगों को खूब भाया।

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