माहे रमजान, ईबादत ए रोजा करने का पवित्र महीना
माहे रमजान, ईबादत ए रोजा करने का पवित्र महीना
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इन दिनों देशभर के मुस्लिम धर्मावलंबी रमजान की तैयारियों में व्यस्त हैं। शुक्रवार 19 जून से धर्मावलंबी रोज़े की पाबंदी में बंधकर खुद को ख़ुदा की ईबादत के लिए पेश करेंगे। इस दौरान सेहरी से लेकर मस्जिदों में नमाज़ अता की जाएगी वहीं शाम को होने वाली रोज़ा इफ्तारी में लोग ख़ुदा को याद करने के साथ हर दिन का रोज़ा पूरा किया जाएगा। रमज़ान को इतना पाक या पवित्र महीना कहा जाता है कि हर कोई उस परवरदिगार की ईबादत में शामिल होता है। अकीदतमंद नमाज़ अता करने के साथ दुआ करते हैं। दरअसल नमाज़ ख़ुदा की ईबादत करने के साथ खुद के शरीर पर नियंत्रण रखने का एक अवसर भी है। जिस तरह से रोज़ा रखकर मुस्लिम धर्मावलंबी पानी तक न पीने की कड़ी ईबादत करते हैं वह इंद्रियों को काबू में रखने की सीख देता है।

रमज़ान अपनी आत्मा को पवित्र करने और अपने शरीर के विकारों को दूर करने का एक पवित्र महीना है। जिसमें कहा गया है कि कि अपनी सभी बुराईयों से दूर रहकर खुदा की ईबादत में इस तरह लग जाओ जैसे गर्मी में एक पत्थर तपता हो। जिस तरह से रमजान में रोजे रखे जाते हैं उससे भूखे - प्यासे रहने वाले लोगों की तकलीफ का अहसास होता है। माहे रमजान को लेकर कहा गया है कि रोजे रखने वाले के साथ रोजा रखने वाले धर्मावलंबी को शाम की नमाज़ के बाद इफ्तारी करवाने वाले के भी सभी पाप खुदा माफ कर देता है। इस महीने में जिस तरह से पवित्रता का ख्याल रखने की पाबंदी है उसी तरह से एक नेकी करने की भी सीख दी जाती है।

रमजान में अपनी ख्वाहिशों को काबू में रखना अपरिग्रह की तरह है, जिसमें यह बताया जाता है कि जरूरत से ज़्यादा इकट्ठा करना ठीक नहीं है। रमजान में खुद के शरीर, लिबाज़ को पाक रखकर खुदा की ईबादत करने की सीख भी दी जाती है। नमाज़ी हर वक्त खुदा का शुक्रगुज़ार होकर उसकी खिदमत में ख़ुद को पेश करता है। रमज़ान में अपनी गलतियों को सुधारकर ख़ुद को पाक साफ करने का एक अवसर होता है। इस तरह से लोग खुद को ख़ुदा की ईबादत में पेश करते हैं। 

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