इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से नौंवा महीना रमज़ान का होता है
इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से नौंवा महीना रमज़ान का होता है
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इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से नौंवा महीना रमज़ान का होता है। इस महीने में मुसलमान लोग रोज़ा रखते हैं और उसके बाद चांद देखकर ईद-उल-फित्र का त्यौहार मनाते हैं। मान्यता है कि रमज़ान के महीने में ही कुरआन अवतरित हुई थी। 

रमज़ान 2016

साल 2016 में रमज़ान 06 जून से शुरु हुए और 05 जुलाई को खत्म होंगे।

रमज़ान और रोज़े

रमज़ान के महीने में रोज़े रखना अनिवार्य माना गया है। इस महीने सभी मुसलमानों को अपनी चाहतों पर नकेल कसकर अल्लाह की इबादत करनी चाहिए। यह महीना सब्र का महीना माना जाता है। इसका वर्णन इस्लाम धर्म की पवित्र पुस्तक कुरान में किया गया है।

रमज़ान में नियम

• रमज़ान के महीने में सुबह सूरज निकलने से पहले सहरी खाई जाती है और फिर शाम में सूरज ढलने के बाद एक तय समय पर ही इफ्तार किया जाता है। इस बीच किसी भी प्रकार का अन्न ग्रहण करना या पानी पीने की सख्त मनाही होती है। 
• रमज़ान के महीने में मुसलमान शिद्दत से नमाज़ पढ़ते हैं और कुरान-शरीफ की तिलावत करते हैं।

रमज़ान में प्रतिबंधित कार्य 

रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने के दौरान लोगों को कई कड़े नियमों का पालन करना पड़ता है। जैसे रमज़ान के महीने में एक मुसलमान को रोज़े के दौरान खान-पान से बचना चाहिए, किसी से लड़ाई-झगड़ा नहीं करना चाहिए, सादगी से रहना चाहिए। वक्त पर नमाज पढ़नी चाहिए और कुरआन के पदों को जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए ।

रमज़ान में छूट

रमज़ान के महीने में केवल बीमार, बूढ़े  या सफर कर रहे लोगों को ही रोज़े रखने से छूट दी गई हैं। साथ ही गर्भवती महिलाओं और दूध पिलाने वाली माताओं को भी रोज़ें रखने या ना रखने की आजादी दी गई है।

जकात का महत्व 

रमज़ान के महीने में जकात अदा करना बेहद जरूरी माना गया है। “ज़कात” उस धन को कहते हैं जो अपनी कमाई से निकाल कर अल्लाह या धर्म की राह में खर्च किया जाए। इस धन का प्रयोग समाज के गरीब तबके के कल्याण और सेवा के लिए किया जाता है। मान्यता है कि जक़ात रमज़ान के महीने में आने वाली ईद से पहले दे देनी चाहिए ताकि गरीबों तक यह पहुंच सके और वह भी ईद की खुशियों में शरीक हो सकें। 

रमज़ान का महत्व 

मान्यता है कि रमज़ान के महीन में रोज़ा रखकर व अल्लाह की इबादत करके इंसान अपने ख़ुदा के करीब जाता है। ऐसा करने से इंसान खुदा से अपने किए हुए गुनाहों की तौबा मांग सकता है। लड़का हो या लड़की सभी पर रमज़ान के महीने में रोज़ा रखना एक फर्ज होता है।

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