गरीबों की भूख और जरुरत को महसूस करना है रोज़ा का असल महत्व
गरीबों की भूख और जरुरत को महसूस करना है रोज़ा का असल महत्व
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रमज़ान जिसकी शुरुआत इस वर्ष 17 मई से हो चुकी है. रमज़ान इस्लाम धर्म का बहुत ही खास और महत्वपूर्ण महीना माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि रमज़ान के पवित्र महीने में इस्लाम धर्म का पवित्र ग्रन्थ कुरान शरीफ को आसमान से उतारा गया था. इस्लाम धर्म के कुल पांच स्तंभ होते है और ये स्तंभ है 'शहादा', 'सलात या नमाज़', 'सौम या रोज़ा', 'ज़कात','हज'. इन पांचो स्तंभों में से रोज़े को महत्वपूर्ण माना जाता है.

रोज़े का मुख्य उद्देश्य इंसानों को अपनी इच्छाओं पर काबू करना है और इसके साथ-साथ रोज़ा आपसी भाईचारे का भी सन्देश देता है. रोज़ा रखने वाले व्यक्ति को गरीबों व जरूरतमंद लोगों के दुख-दर्द व भूख-प्यास का आभास होता है. रमज़ान के महीने को सब्र और सुकून भरा महीना भी कहा जाता है. ऐसा कहा जाता है कि रमज़ान के महीने में अल्लाह की खास रहमत बरसती है और खुद अल्लाह ने कुरान शरीफ में रोज़ा रखने को जरुरी बताया है.

रोज़े को अरबी भाषा में 'सौम' भी कहा जाता है. अरब में सौम का मतलब- खुद पर काबू या नियंत्रण पाना या रुकना, ठहरना. रोज़ा रखना के असल महत्व ये होता है कि इंसान अपनी भूख पर नियंत्रण रख सके और भूख को शिद्दत से महसूस कर सके इसके साथ ही ये भी महसूस कर सके कि जब किसी गरीब इंसान को भूख लगती होगी तो उसे कैसा लगता होगा.

यहाँ 20 घंटे से भी ज्यादा समय तक मुसलमानो को रखना पड़ता है रोज़ा

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