कश्मीरी पंडितों को लेकर राहुल गांधी ने PM को लिखा पत्र, क्या हैं इसके सियासी मायने ?
कश्मीरी पंडितों को लेकर राहुल गांधी ने PM को लिखा पत्र, क्या हैं इसके सियासी मायने ?
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नई दिल्ली: कश्मीर में आतंकवाद की जड़ बन चुके अनुच्छेद 370 को हटाने का पुरजोर विरोध करने वाली कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और लोकसभा सांसद राहुल गांधी ने अब कश्मीरी पंडितों के प्रति हमदर्दी जताई है। दरअसल, राहुल गांधी ने कश्मीरी पंडितों की समस्याओं को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। पत्र में राहुल ने कहा है कि वह पीएम मोदी का ध्यान कश्मीर से विस्थापित कश्मीरी पंडित समुदाय की पीड़ा की तरफ आकर्षित करना चाहते हैं। 

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने पीएम नरेंद्र मोदी के नाम खुला पत्र लिखा है और उसे अपने ट्विटर हैंडल पर साझा करते हुए कहा है कि 'प्रधानमंत्री जी, भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कश्मीरी पंडितों के प्रतिनिधिमंडल ने मुझसे मिलकर अपने दुखद हालात बताए। आतंकियों की टारगेटेड किलिंग के शिकार कश्मीरी पंडितों को बिना सुरक्षा गारंटी घाटी में जाने के लिए विवश करना निर्दयी कदम है। आशा है कि आप इस विषय पर उचित कदम उठाएंगे।'

राहुल गांधी ने इस पत्र में कहा है कि प्रधानमंत्री जी पूरे भारत को प्रेम और एकता के सूत्र में पिरोने के लिए जारी भारत जोड़ो यात्रा के जम्मू पड़ाव में कश्मीरी पंडितों के एक प्रतिनिधिमंडल ने अपनी समस्याओं को लेकर मुझसे मुलाकात की थी। उन्होंने (पंडितों ने) बताया कि सरकार के अधिकारी उन्हें कश्मीर घाटी वापस काम पर जाने के लिए विवश कर रहे हैं। राहुल ने लिखा कि, इन हालातों में सुरक्षा और सलामती की पक्की गारंटी के बगैर उन्हें घाटी में काम पर जाने के लिए बाध्य करना एक निर्दयी कदम है। स्थिति सुधरने और सामान्य होने तक सरकार इन कश्मीरी पंडित कर्मचारियों से अन्य प्रशासकीय और जनसुविधा के कार्यों में सेवाएं ले सकती हैं। राहुल गांधी ने अपने पत्र में कहा है कि मैंने कश्मीरी पंडित भाइयों और बहनों को आश्वासन दिया है कि उनकी चिंताओं और मांगों को आप तक पहुंचाने की पूरा कोशिश करूंगा। मुझे उम्मीद है कि यह सूचना मिलते ही आप इस बारे में उचित कदम उठाएंगे।

अनुच्छेद 370 और 35A का आतंकवाद से रिश्ता :-

बता दें कि, केंद्र सरकार ने जब 2019 में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35A हटाने का प्रस्ताव पेश किया था, उस समय कांग्रेस ने संसद के दोनों सदनों में इसका पुरजोर विरोध किया था। यही अनुच्छेद 370 और 35A कश्मीर में अलग समिधान और अलग ध्वज की इजाजत प्रदान करता था, यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले और केंद्र सरकार के कई कानून भी उस समय जम्मू कश्मीर में लागू नहीं होते थे।  यहाँ तक कि, 370 रहने तक कश्मीर में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा जलाना भी अपराध नहीं हुआ करता था। जम्मू कश्मीर के लोग भारत से अधिक पाकिस्तान के समर्थक हो गए थे, यहीं से कट्टरपंथ का जहर फैला और कश्मीर के मुस्लिम युवा आतंकवादी बनने लगे। जिसका खामियाज़ा कश्मीरी हिन्दुओं को भुगतना पड़ा। ये आतंकी पूरे जम्मू कश्मीर में निजाम-ए मुस्तफा यानी इस्लामी शासन चाहते थे, जिसके लिए वहां सदियों से रह रहे कश्मीरी हिन्दुओं को 'मारे जाओ, मुस्लिम बन जाओ या भाग जाओ' के 3 विकल्प दिए गए थे और हज़ारों हिन्दुओं की हत्या कर दी गई थी तथा महिलाओं के वीभत्स सामूहिक बलात्कार हुए थे। 

14 सितंबर 1989 से शुरू हुआ था नरसंहार:-

बता दें कि, उस समय फारूक अब्‍दुला जम्मू कश्मीर में मुख्यमंत्री हुआ करते थे। 1989 आते-आते कश्‍मीरी पंड‍ितों की हत्‍या का सिलसिला शुरू हो गया था। लेकिन, 14 सितंबर 1989 से एक तरह से कश्मीरी हिन्दुओं के खिलाफ जंग छेड़ दी गई। भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और वकील कश्मीरी पंडित, तिलक लाल तप्लू का JKLF के आतंकियों ने क़त्ल कर दिया। इसके बाद जस्टिस नील कांत गंजू को भी गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया। उस दौर के ज्यादातर हिंदू नेताओं की हत्या कर दी गई। 

राहुल गांधी के साथ फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती:-

बता दें कि, कश्मीरी पंडित खुद कहते हैं कि, उनके परिजनों की हत्या के लिए फारूक अब्दुल्ला जिम्मेदार हैं। लेकिन, यही फारूक अब्दुल्ला, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होते हैं और राहुल उनसे इस संबंध में कुछ नहीं कहते। वहीं, जम्मू कश्मीर में कोई तिरंगा उठाने वाला नहीं मिलेगा कहने वाली और लगातार पाकिस्तान से बातचीत की वकालत करने वाली महबूबा मुफ़्ती भी राहुल की यात्रा में शामिल हुईं। इन सभी ने एक सुर में 370 हटाने का विरोध किया था, यहाँ तक कि, विपक्षी नेताओं द्वारा ये धमकी भी दी गई थी कि यदि 370 को हाथ लगाया तो, कश्मीर में खून की नदियाँ बहेंगी। खुद राहुल गांधी ने भी 370 हटाने के सरकार के फैसले का विरोध किया था। ऐसे में अब राहुल गांधी के इस पत्र पर सवाल उठ रहे हैं कि, क्या सचमुच वे कश्मीरी हिन्दुओं के प्रति हमदर्दी रखते हैं या फिर उन्होंने सियासी लाभ के नजरिए से यह पत्र लिखा है। क्योंकि, जिस 370 ने कश्मीरी पंडितों को सबसे अधिक दर्द दिया है, कांग्रेस शुरू से उसका विरोध करती रही है। 

 

     
 कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर क्या कहते हैं पूर्व DGP शेष पॉल वैद:-

 

जम्मू -कश्मीर के पूर्व पुलिस महानिदेशक (DGP) शेष पॉल वैद, देश में आतंकवाद के पनपने के लिए 1989 में केंद्र में रही कांग्रेस सरकार (राजीव गांधी सरकार) को जिम्मेदार ठहराते हैं। उनका कहना है कि जम्मू-कश्मीर में हिन्दुओं के नरसंहार और पलायन से पहले पुलिस ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI द्वारा प्रशिक्षित किए गए 70 आतंकियों के पहले जत्थे को अरेस्ट कर लिया था। पूर्व DGP का दावा है कि फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली तत्कालीन जम्मू-कश्मीर सरकार के सियासी फैसले की वजह से इन आतंकियों को रिहा करना पड़ा था। बाद में इन आतंकियों ने राज्य में कई आतंकी संगठनों की अगुवाई की। सूबे के पूर्व DGP शेष पॉल वैद ने उन आतंकियों का नामों भी बताया है, जिन्हें फारूक अब्दुल्ला सरकार ने छोड़ दिया था। बाद में इन्हीं आतंकियों ने घाटी में कई सारी आतंकी वारदातों को अंजाम दिया।  जिसके कारण ही 1990 में हज़ारों कश्मीरी हिन्दुओं को अपनी जान गंवानी पड़ी और लाखों को अपना घर बार सब छोड़कर पलायन करना पड़ा था।  

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