ओ पालन हारे.. 
                   तुम्हरे बिन हमरा कौनों नाही..
ओ पालन हारे.. तुम्हरे बिन हमरा कौनों नाही..
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ओ पालन हारे..

                  तुम्हरे बिन हमरा कौनों नाही..

बचपन में सुना था कि जब इंसान सारी दुनिया से हार जाता हैं तब ईश्वर की शरण में आता है और वो भी पुरी आस्था और विश्वास के साथ, और ईश्वर भी उस हताश निराश मानव पर कृपा कर उसे हारी हुई बाज़ी जीता देता है |

 

वैसे इस कथन पर मेरा यकीन कम ही रहा पर पिछले 3 दिनों में कुछ ऐसा वाकया घटा के अब मैं, भी इस बात पर यकीन करने लगा हूँ.

असल में हुआ यूं की पिछले दिनों मैंने 2 फिल्मे देखी पहली अमितजी की शानदार फिल्म दीवार | क्या फिल्म थी, पर जो सबसे खास था, मेरे लिए वो ये की फिल्म में अमितजी मन्दिर की चौखट पर नही जाते इतनी नफरत रहती है उन्हें भगवान से, लेकिन आखिर में हालात उन्हें मंदिर में जाने को मजबूर कर देता है. और फिर वो अपनी तकलीफ़ का पूरा रोना भगवान को सुनाते है, और भोलेनाथ भी पुरे धेर्य के साथ उनकी बात सुनते है |

और दूसरी फिल्म देखी लगान इसमें भी जब आधी टीम आउट हो जाती है और हार दिखने लगती है तब आमिर खान भी पुरे गाँव के साथ कान्हा का भजन-पूजन शुरू कर देते है और आखरी बॉल पर छक्का मार कर धोनी की तरह, जीत जाते है यहाँ तक तो सब ठीक चल रहा था कि तभी अचानक मेरी नज़र अखबार पर गई जिसमे लिखा था राहुल गांधी ने अक्षरधाम में माथा टेका, पूजा की, तिलक लगाया|

 

तब लगा दादी की बात सही थी इंसान जब,सब जगह से (लोकसभा -विधानसभा) हार जाता है, तब उसे ईश्वर ही याद आता है, वो कांग्रेस जिसने 1947 से लेकर 2013 तक भारतीय गणतंत्र पर लगभग एक तरफ़ा राज़ किया (आपातकाल के बाद और अटल सरकार के कुछ टाइम छोडकर) ,वो कांग्रेस 2014 के बाद इस कदर हाशिये पर आ गई जैसे कभी थी ही नही, वो पार्टी जो 49 वर्षो तक केंद्र सरकार का केंद्र बिंदु रही वो 2014 में नमो के कांग्रेस मुक्त भारत के राग से 44 सीटो पर सिमट गई. 1885 में बनी कांग्रेस रूपी काया की 2014 में बीजेपी ने छाया तक पोछ डाली | और कांग्रेस लोकसभा में क्या हारी की पंजाब जैसे कुछ एक राज्यों को छोड़ दे तो जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, गोवा, बिहार, दिल्ली, महाराष्ट्र हर राज्य में कांग्रेस कोने में चली गई |

पर सबसे ज्यादा दुःख ये हैं कि रेली, सभा, खाट सभा, पैदल यात्रा और दलित के घर पर भोजन करने वाले कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी, मोदी काका के सामने पप्पू साबित हुए. इतना ही नही राहुल गांधी ने देश के सबसे बड़े और अपने लोकसभा क्षेत्र वाले राज्य उत्तर प्रदेश में तो सत्ता पाने के लिए,अखिलेश की साइकिल के डंडे पर भी बैठ गए लेकिन वहा तो अखिलेश ने राहुल समेत पुरी साइकिल गड्ढे में उतार दी.

नोट बंदी, GST, को बीजेपी के दोगली नीति बताकर जनता को सच बताने के लिए राहुल गांधी कहाँ-कहाँ नहीं गये स्कूल, कॉलेज, चौपाल, मैदान, सब जगह जोर-जोर से गरजे पर भाग्य की विडम्बना देखिये यहाँ भी कभी अशुद्ध हिंदी, तो कभी बोलने की जल्दी में अपनी ही पार्टी की बैंड बजा गये | जिसके कारण पप्पू फिर फ़ैल हो गया लेकिन इस पर भी वे निराश नही हुए जब भारत में भारतीयों ने उनकी बात नही सुनी तो हॉवर्ड यूनिवर्सिटी गए फिरंगियों को बीजेपी का सच सुनाने |

ये उनकी एक रणनीति भी हो सकती है शायद, वे बाहरी तौर पर बीजेपी को कमजोर करना चाहते हो, इसलिए पाठको से निवेदन है की राहुलजी की योग्यता पर शक ना करे | इतनी मेहनत के बाद भी सोनियाजी ने राहुल को अध्यक्ष नही बनाया इसका हम सभी को खेद है|

खैर शाम, दम, दंड, भेद लगाने के बाद  भी हालात में कोई परिवर्तन नही दिखा, मोदीजी नोट बंद करके भी मन की बात बोल रहे है, प्रोटोकाल तोड़ कर भी लोगो के गले लग रहे है जमीन पर नही सम्हल रही ट्रेन को समंदर में तैराने जा रहे है और राहुल सुखी रोटी खाकर बिना RO-UV का पानी पीकर भी हारे जा रहे है और ऐसे में गुजरात चुनाव का आना ….

बाप रे इस वक्त राहुल गाँधी के अन्दर उठ रहे तूफान को सिवाये भगवान के कौन समझ सकता है और इस कारण इस बार वे गुजरात चुनाव, नीति से नहीं भक्ति से जीतना चाहते है, इसीलिए गुजरात जाकर सीधे अम्बाजी के चरणों में माथा टेक दिया है, और भगवान स्वामी नारायण से आशीर्वाद माँगा है |

पर ये भी सच है कि ईश्वर केवल भाव देखता है, यही कारण है की राहुल गांधी पर कृपा बरसने लगी है हार्दिक पटेल ने गुजरात चुनाव में पाटीदार वोटो के साथ उनका हार्दिक अभिनन्दन किया है, गुजराती बालाये उनके साथ सेल्फी लिए जा रही है, इतना ही नहीं गुजरात की पूजा मध्य प्रदेश में भी काम आ रही है चित्रकूट चुनाव में कांग्रेस ने अपनी सीट बचा ली है |

 

एक्जिट पोल चाहे जो बोले  इस बार राहुल दीन-हीन-दुखी होकर पालन हारे की भक्ति में लग गये है |

अब ये भक्ति की शक्ति, 182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा में क्या चमत्कार करती है ? ये तो वक्त बताएगा पर एक सवाल आपके बीच छोड़ रहा हूँ कि हमेशा अल्पसंख्यक वोटो को पकड़ने वाली कांग्रेस क्या अपनी छवि बदलना चाहती है या सत्ता की तड़प में बीजेपी की तरह धर्म की राजनीती से सत्ता का स्वाद चखना चाहती हैं |

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