“कहाँ है समानता और आज़ादी ?”
“कहाँ है समानता और आज़ादी ?”
Share:

हिंदुस्तान को आजाद हुए 68 साल बीत गए, जाने कितनी पीढ़ियाँ जन्म लेकर गुजर गई, जाने कितने राजनीतिक शासक आए और बदल गए। भारतीय समाज के उत्थान और भले के लिए जाने कितने वादे और दावे किए गए, कुछ अमल हुए कुछ धूमिल हो गए। पर क्या आज भी हम स्वतंत्र और समान हो पाये है? क्या भारतीय समाज की व्यवहार शैली और सर्वधर्म संभाव की विचारधारा आजाद हिन्द की पृस्ठभूमि पर पूर्णरूप से सार्थक हो पाई है? शायद नहीं, वर्तमान दौर की जीवन शैली और पश्चिमी विचारधारा ने भारत को इतना बाँट दिया है कि आज हम एक घर मे चार दिवारे बनाने लगे है, माता-पिता को अनाथालयों मे रखने लगे है, धर्म बटें है, जात-पात बंटी है, उंच-नीच की मारा-मारी है, अपने ही वतन से कर रहे गद्दारी है। सब को सब कुछ चाहिए, मै आबाद सही ना सही मगर तेरी बरबादी जरूर चाहिए, बस यही झमेला आज के मानव मस्तिष्क मे घर कर गया है |

हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई,जैन-बुद्ध इनमे भी अनुसूचित जाति, अनु. जनजाति, सामान्य और अन्य पिछड़ा वर्ग की माथा-पच्ची, बाकि बचे अल्पसंख्यक और अनसुनी-अनकही जातियाँ जिनके बारे मे कभी कोई नहीं सोचता। आज भी देश मे कई ऐसी जातियाँ है जिनकी ना मतदान मे, ना शिक्षा मे ओर ना सरकारी नौकरियों मे कोई योगदान है, ऐसे ही कुछ भारतीय समुदाय है जैसे बांछड़ा समुदाय, हिंजड़ा समुदाय, आदिवासी समुदाय और कंजर समुदाय जिनके बारे मे शायद न वो स्वयं सोचते है ना ही कोई इनकी सुध लेता है। भारत की आजादी के 68 साल बाद भी इनकी जीवन यापन करने तरीका जस का तस है।

आखिर इनके बारे मे कौन सोचेगा? कौन इनके हक की लड़ाई लड़ेगा ? ये लोग इतने आर्थिक, सामाजिक और मानसिक तौर पर सक्षम भी नहीं की अपना लीडर बना पायेऔर देश मे अपनी आवाज बुलंद कर सके। आज भी इनको तिरस्कार और हिन भावना का शिकार होना पड़ता है। फिर कहाँ भारतीय समाज आजाद और समान है? आजादी तो बस उन महान नारों मे गूंज कर रह गई है, जो केवल कुछ अवसरों पर सुनाई देती है और 1947 की आजादी की याद दिलाती है।

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -