May 29 2016 06:21 AM
कल भी तेरी हसरत थी और हसरत आज भी है,
बस एक दीदार हो जाये इतनी सी कोशिश आज भी है,
माना नफरत है आज भी बेइंतहा मेरे सीने में,
फिर भी तुझपे मिट जाने की चाहत आज भी है।
किसकी थी खता, किसका था कुसूर,
इससे क्या फर्क पड़ता है,
जिन्दा है कही वो दिल-ए-जज्बात,
ये हकीकत तो सलामत आज भी है।
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