नईदिल्ली। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस कहा जाता है। इस दिन धन का पूजन होता है। यूं तो धन कई तरह का होता है। जिसे सामान्यतौर पर स्वास्थ्य धन, पशुधन, ऐश्वर्य, समृद्धि, शांति और रूपयों और आभूषणों की चमक व सिक्कों की खनक वाले धन के तौर पर देखा जाता है। मगर दीपावली के पर्वों के अंतर्गत आने वाले धनतेरस त्यौहार पर जिस धन का पूजन होता है वह है आरोग्यता और धन संपत्ती, सोने के आभूषण और हमारे द्वारा खरीदे जाने वाले बर्तन, आदि सामान।
हालांकि मौजूदा समय में लोग अपनी सुविधा के अनुसार होम अप्लायसेंस और अन्य मशीनों की खरीदी करते हैं। मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे। उनके एक हाथ में आयुर्वेद धारण किया हुआ माना जाता है जबकि दूसरे हाथ में वह दीव्य कलश धारण किए होते हैं। उनके पूजन से मानव को ऐश्वर्य, सुख, धन और संपत्ति के साथ आरोग्यता प्राप्त होती है।
इस वर्ष 17 अक्टूबर को धनतेरस का पर्व मनाया जाएगा। सुबह से ही श्रद्धालु भगवान धन्वंतरि का पूजन करेंगे। आयुर्वेदिक चिकित्सक विशेषतौर पर भगवान धन्वंतरि का पूजन करते हैं। इस दिन बाजारों में विशेष रौनक रहती है। लोग बाजारों से बर्तन, सोने - चांदी के आभूषण व होम अप्लायसेंस की खरीदी करेंगे। खरीदी के बाद उनका पूजन किया जाएगा।
पौराणिक मान्यता है कि धनतेरस का पूजन कल्याणकारी होता है। विधि - सुबह के समय अभ्यंग स्नान करने के बाद शुद्ध वस्त्र आदि धारण करें। यदि हो सके तो लाल या गुलाबी रंग के परिधान पहनें। सर्वप्रथम श्रीगणेश, लक्ष्मी जी और कुबेर जी का पूजन करें।
माता लक्ष्मी जी को लाल पुष्प चढ़ाऐं और कुबेर जी से आशीर्वाद लें कि वे धन - धान्य से संपन्नता बनाए रखें। भगवान के चरणों में नारियल समर्पित करें। साथ ही इस मंत्र का जाप करें ॐ गणपति देवाय नमः,ॐ श्रिये नमः, ॐ कुबेराय नमः मंत्र का जप करें।
धनतेरस पर दीपदान का भी विशेष महत्व होता है। शाम को दीपदान जरूर करें। घर के मुख्य द्वार पर तिल के तेल का चारमुखी दीपक जलाऐं। थाली में यमराज के लिए सफेद बर्फीए तिल की रेवड़ी या तिल मुरमुरे के लडडू,एक केला और एक गिलास पानी रखें।
दिवाली पर इन चीजों का दिखाई देना माता लक्ष्मी कि कृपा का संकेत है
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