Apr 01 2017 06:00 AM
यदि परिश्रम से सब-कुछ सम्भव है तो प्रार्थना से परिश्रम में प्रोत्साहन सम्भव है....नृत्य करने का अनुभव स्वयं का ही हो सकता है... अर्थात आदर्श दृष्टि का अनुभव भी स्वयं का ही हो सकता है...इसी प्रकार 6 फीट जगह में 6 घंटे शयन का सुखद अनुभव स्वयं की धरोहर है...इसी प्रकार 6 चपाती भोजन भी हमारा ही उदेश्य हो सकता है...और इन सब मे प्रार्थना को शामिल करना भी हमारा ही सहज नैतिक कर्तव्य होता है.
प्रार्थना सुखद अनुभव को निरंतर जारी रखने हेतु एक निवेदन है... और प्रार्थना मनोभाव को मनोयोग में सहज परिवर्तित करने का माध्यम है..प्रार्थना से सकारात्मक उर्जा, सकारात्मक शक्ति में परिवर्तित होती है.ण्ज्योतिष शास्त्र भी यही कहता है कि प्रार्थना करने से न केवल सकारात्क शक्ति का एहसास होता है तो वहीं प्रार्थना में ही सब कुछ निहित है, क्योंकि इ्र्रश्वर भक्ति का सबसे सरल मार्ग यदि कोई है तो वह प्रार्थना ही।
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