सिंहस्थ में बचे 8 माह, जान हथेली पर रखकर दर्शन कर रहे श्रद्धालु
सिंहस्थ में बचे 8 माह, जान हथेली पर रखकर दर्शन कर रहे श्रद्धालु
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मध्यप्रदेश के पांचवे बड़े शहर के तौर पर पहचाना जाने वाला वह शहर जहां हवा से होती सरसराहट भी शिवोहम् शिवोहम् का राग गाती है। वह नगरी जहां हर सावन में भगवान राजा बनकर अपने भक्तों का हाल जानने निकलते हैं और इंद्र वर्षा जल से उनका अभिषेक करते हैं तो मां शिप्रा की जलधारा तट पर पहुंचे शिव के चरण पखारने के लिए उत्सुक होती है। जहां पर हर बारह बरस में धार्मिक मेला लगता है और अमृत बूंदों का स्नान ध्यान के माध्यम से स्मरण किया जाता है। ऐसे में कहीं धुनि रमाने वाले साधुओं की साधना देखकर श्रद्धालु अभिभूत हो उठते हैं तो कहीं पांडालों में चल रही संतों की कथाओं का रस पान कर मन प्रभुभक्ति से ओत प्रोत हो जाता है। दरअसल यहां प्रति बारह वर्ष में सिंहस्थ का आयोजन होता है। सिंहस्थ 2016 इस वर्ष होने वाला एक ऐसा ही दुर्लभ और बड़ा आयोजन है।

जिसकी तैयारी केवल उज्जैन ही नहीं मध्यप्रदेश सरकार की प्राथमिकताओं में भी है लेकिन वर्तमान में इस नगरी के हालात देखकर ऐसा लगता नहीं है कि अब से महज 8 माह बाद यह महापर्व आयोजित होने वाला है। हर जगह सड़कें खुदी पड़ी हैं, अजी सड़कें तो छोडि़ए घाटों पर साफ सफाई नहीं है। घाट बदहाल हैं। यहां महिलाओं को वस्त्र बदलने के लिए पर्याप्त शेड्स का प्रावधान नहीं किया गया है। जो शेड्स के स्थान दिए गए हैं वहां भी अव्यवस्थाऐं फैली हुई हैं। यही नहीं यह नगरी मध्यप्रदेश के पांचवे बड़े शहर और प्रदेश के प्रमुख धार्मिक और हैरिटेज शहर के तौर पर जानी जाती है। जहां बारह ज्योर्तिलिंग में से एक श्री महाकालेश्वर का मंदिर प्रतिष्ठापित है।

तो दूसरी ओर विश्व में एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां मंगल दोष शांति के लिए भातपूजन किया जाता है। जहां विश्वभर से बड़ी तादाद में श्रद्धालु मंगल दोष निवारण के लिए उमड़ते हैं। ऐसे में ये स्थल देशभर की आस्था का केंद्र हो जाता है। मगर यहां अव्यवस्थाओं का अंबार लगा है। हालात ये हैं कि काले और अन्य तरह के अतिप्राचीन पत्थरों से निर्मित ये मंदिर अपना पुराअस्तित्व खोते जा रहे हैं। कुछ मंदिर निर्माण कार्य के चलते कमजोर होते जा रहे हैं तो दूसरी ओर टीले पर प्रतिष्ठापित कुछ मंदिर ऐसे हैं जहां सीमेंट कांक्रीट तो नाम के लिए ही नज़र आ रहा है वहीं साफतौर पर टीले दिखाई दे रहे हैं। ऐसे समय में जब केंद्र में भाजपानीत राजग गठबंधन सरकार है मध्यप्रदेश में भी भाजपा सरकार है और फिलहाल नगर निगम बोर्ड में भी भाजपा प्रभुत्व में है देश का एक प्रमुख तीर्थ स्थल उपेक्षा का शिकार है। 

जहां किसी भी समय इन मंदिरों में गंभीर हादसा हो सकता है। मगर इस ओर किसी का ध्यान नहीं है। बारह ज्योर्तिलिंग में से एक ज्योर्तिलिंग श्री महाकालेश्वर दूरदर्शी और आधे अधूरे निर्माण कार्यों की भेंट चढ़ता नज़र आ रहा है। बारिश में यहां दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं को हर ओर बस पानी ही पानी नज़र आता है। यहां आकर कुछ लोग तो भ्रमित ही हो जाते हैं उन्हें लगता है जैसे यह मंदिर शिप्रा नदी पर ही प्रतिष्ठापित है। यह सब हो रहा है महाकाल टनल के कारण। दरअसल महाकाल टनल का काम अधूरा छोड़ दिया गया जिसके कारण श्री महाकालेश्वर मंदिर परिसर की पिछली दीवार ढह गई।

इसके बाद हर मौसम में पानी रिसरिसकर परिसर के निचले क्षेत्र में प्रतिष्ठापित श्री महाकालेश्वर मंदिर में जाने लगा। जिसके कारण तेज़ बारिश होने पर हर कहीं पानी ही पानी नज़र आने लगता है। खूबसूरत काले पत्थरों से बना यह अतिप्राचीन मंदिर आधुनिकता की भेंट चढ़ गया है। भारत में कहीं भी जाऐं मगर मंगल दोष का सटिक उपाय आपको उज्जैन की राह की ओर खींच ही लाता है। श्री मंगलनाथ मंदिर में वैदिक रीति से होने वाला भात पूजन आपको शांति तो देता ही है आपकी समस्या भी समाप्त हो जाती है। मगर उपेक्षा के कारण इस मंदिर की इमारत क्षतिग्रस्त हो रही है।

हालात ये हैं कि ठीक नदी के उपर टीले पर मंदिर की कुछ दीवारें और केवल शिखर के साथ ध्वज नज़र आता है। मंदिर इतनी खतरनाक स्थिति में पहुंच गया है कि जोरदार बारिश होने पर या भूस्खलन जैसे हालात बनने पर यह कभी भी शिप्रा के आंचल में समा सकता है। ऐसे में देश विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा और व्यवस्था पर सवाल उठना स्वाभाविक है। हालांकि मंदिर की स्थिति को सुधारने पर विचार किया गया मगर यह केवल विचार तक ही सीमित रहा और अब आधे  अधूरे निर्माण कार्य और भी खतरनाक स्थिति को निमंत्रित कर रहे हैं। 

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