किताब नहीं, जान हथेली पर रखकर कर रहे बच्चे पढ़ाई
किताब नहीं, जान हथेली पर रखकर कर रहे बच्चे पढ़ाई
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देशभर में बारिश का दौर है। इस बारिश के मौसम से लोगों ने राहत ली है। सूखी धरती पर अब हरियाली नज़र आने लगी है। तो लोगों का गला भी तर रहने लगा हैं लेकिन बारिश अधिक होने से लोग परेशान भी हैं। नदी - नाले उफन गए हैं। सबसे बड़ी परेशानी ऐसे क्षेत्रों में रहने वालों की है जिन्हें बारिश के बाद तेज़ बहाव वाली नदी पारकर जाना होता है। हालात ये हैं कि ये लोग किसी लकड़ी के पटिए और एक सिरे से दूसरे सिरे तक बंधी रस्सी और लकड़ी के पाट से ही अपनी यात्रा पूर्ण करते हैं।

ऐसे हालात हमारे देश में बारिश के बाद आमतौर पर देखने को मिलते हैं। आप कहेंगे यह भी कोई नई बात है क्या, खास चलते हैं हिंदुस्तान में बुलेटप्रुफ में और आम चले भगवान भरोसे। स्कूली बच्चों की बारिश में सबसे ज़्यादा मुश्किल हो जाती है। हमारे देश में प्रतिवर्ष स्कूली शिक्षा के लिए राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा बड़े पैमाने पर पैसा बहाया जाता है। सरकारें पाठ्यक्रम तक अदल - बदलकर तय किया करती हैं लेकिन इनका ध्यान गांवों की ओर जाने वाली अधोसंरचना पर नहीं होता है। वही संरचना जो कि रस्सी या तार से जुड़े पाट पर निर्भर होती है।

बच्चे अपनी जान का जोखिम रखकर नदी पार करते हैं और जैसे - तैसे स्कूल पहुंचते हैं। अब स्कूल तो आ गए लेकिन थोड़ी सी पढ़ाई हुई और स्कूल पूरा होने की बेल बज गई। बारिश में स्कूल की फ्लोर से पानी टपकता है सो बच्चों के बैठने के लिए जगह ही नहीं है। ऐसे में बच्चे पढ़ेंगे कहां जिसके कारण उनके पीरियड्स जल्दी खत्म हो जाते हैं। आधा स्कूल कर बच्चे फिर जान हथेली पर रखकर वापस आ जाते हैं।

कई बार तो बच्चों को बारिश के मौसम में पीने के पानी की ही मुश्किल हो जाती है और कई बार स्कूल का परिसर खुद ही संवारना होता है। अब ऐसे जर्जर भवनों में बच्चे पढ़ें तो कैसे पढ़ें। सच ही है स्कूली जीवन में बच्चे जान हथेली पर रखकर अध्ययन करने पर आज भी मजबूर हैं।

'लव गडकरी'

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