प्रेम अनमोल

प्रेम अनमोल
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एक डलिया में संतरे बेचती बूढ़ी औरत से एक युवक अक्सर संतरे खरीदता। अक्सर, खरीदे संतरों से एक संतरा निकाल उसकी एक फाँक चखता और कहता, "ये कम मीठा लग रहा है, देखो !" बूढ़ी औरत संतरे को चखती और प्रतिवाद करती "ना बाबू मीठा तो है!" वो उस संतरे को वही छोड़, बाकी संतरे ले गर्दन झटकते आगे बढ़ जाता। युवक अक्सर अपनी पत्नी के साथ होता था, एक दिन पत्नी नें पूछा "ये संतरे हमेशा मीठे ही होते हैं, पर यह नौटंकी तुम हमेशा क्यों करते हो ?"

युवक ने पत्नी को एक मघुर मुस्कान के साथ बताया "वो बूढ़ी माँ संतरे बहुत मीठे बेचती है, पर खुद कभी नहीं खाती, इस तरह उसे मै संतरे खिला देता हूँ। एक दिन, बूढ़ी माँ से, उसके पड़ोस में सब्जी बेचनें वाली औरत ने सवाल किया, ये झक्की लड़का संतरे लेते समय इतनी चख चख करता है, पर संतरे तौलते समय मै तेरे पलड़े देखती हूँ, तू हमेशा उसकी चख चख में, उसे ज्यादा संतरे तौल देती है। बूढ़ी माँ नें साथ सब्जी बेचने वाली से कहा "उसकी चख चख संतरे के लिए नहीं, मुझे संतरा खिलानें को लेकर होती है, मै तो बस उसका प्रेम देखती हूँ, पलड़ो पर संतरे अपनें आप बढ़ जाते हैं ।

 

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