Editor Desk: अब राजधर्म का पालन करेगा संघ?
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हाल ही में कुछ दिनों से देश में एक चर्चा जोरो पर है, जो देश के एक बड़े संगठन आरएसएस और देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के इर्द-गिर्द घूमती दिखाई देती है. वहीं इस कड़ी में अब जाकर जिस वक़्त का लोगों को इंतजार था वो वक़्त भी अब लौट गया. जिसमें 7 जून की शाम को प्रणब मुखर्जी ने आरएसएस के तृतीय वर्ग पास कर चुके स्वयंसेवकों को देशभक्ति, राष्ट्रभक्ति और विविधता में एकता का पाठ पढ़ाया और इस बहस,इस चर्चा को विराम दिया. 

हुआ यूँ कि प्रणब मुखर्जी देश के पूर्व राष्ट्रपति होने के पहले वरिष्ठ कांग्रेस नेता थे, जिन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस को अपनी पूरी ज़िंदगी दी है. वहीं स्वाभाविक तौर पर प्रणब मुखर्जी अगर कांग्रेसी थे तो उन पर देश के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ना लाजमी है, वहीं गांधी जी के अपने विचारों को देखा जाए और संघ के विचारों की तुलना की जाए तो यहाँ पर किसी भी तरह का कोई मेल नहीं बनता, यही कारण था कि देश में चल रही यह बहस राजनीतिक तो थी ही लेकिन सोशल मीडिया और बाकि प्लेटफार्म पर भी इस चीज का खासा इंतजार था कि गांधी के विचारों से नफरत करने वाले आरएसएस के कार्यक्रम में एक गांधीवादी प्रणब मुखर्जी क्या कहेंगे?

प्रणब मुखर्जी ने अपना भाषण शुरू करने के साथ ही देश के सामने यह आवाह्न  कर दिया था कि देश भक्ति और राष्ट्रभक्ति के बारे में ही बोलेंगे. प्रणब साहब ने अपना भाषण भी कुछ इसी अंदाज में शुरू किया और संघ को असल राष्ट्रभक्ति का पाठ पढ़ाया. प्रणब मुखर्जी ने अपने भाषण में जिस बात को सबसे ज्यादा तवज्जों दी, वो है देश की बहुलतावादी संस्कृति. देश का संघ परिवार हमेशा से देश की संस्कृति को धर्म के एक खांचे में फिट करने की कोशिश करते आया है, जिसमें वो हमेशा से नाकाम रहा है. 

इसमें कोई दोराय नहीं है कि स्वयंसेवक हमेशा से पंडित जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल को अलग विचार का बताकर इन दो महापुरुषों के बारे में कई अफवाह फैलाता है आये दिन सोशल मीडिया कई स्वयंसेवकों को नेहरू के बारे में गलत अफवाह फैलाते देखा गया है उन्हीं सब बातों को नकारते हुए प्रणब दा ने संघ को नेहरू के विचारों का पाठ पढ़ाया जो अहम था.

बहुलतावादी संस्कृति का अपने भाषण में सबसे ज्यादा उपयोग करते हुए प्रणब दा ने लोगों को बताने की कोशिश की है कि, देश के 1.3 अरब अपने दैनिक जीवन में करीब 122 भाषाओं और 1600 बोलियों का उपयोग करते है, उसके बाद भी हमारा इतिहास हमेशा विविधता में एकता का रहा है, वहीं संघ कभी भी इस विचारधारा पर यकीन नहीं करता है, संघ के लिए एक देश एक धर्म हमेशा से प्यारा लगते आया है. वहीं संघ के इतिहास में कहा जाता है कि एक समय तक उन्होंने देश के राष्ट्रीय झंडे तिरंगे को भी वो इज्जत नहीं दी जो एक देशभक्त को देनी चाहिए.

वहीं विविधता में एकता की बात पर प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि इतने धर्म, इतनी भाषाएं, इतनी बोलियां होने के बाद भी लोगों का यहाँ संविधान में अटूट विश्वास है और सभी लोग एक झंडे के निचे राष्ट्रधर्म का पालन करते आये है यही हमारा इतिहास है,यही हमारी खासियत है और इसके लिए हम जाने जाते है. 

आरएसएस के इस कार्यक्रम में प्रणब मुखर्जी का जाना जहाँ एक और कोंग्रेसियों को खतरा लग रहा था वहीं कुछ कांग्रेसी नेता प्रणब मुखर्जी के भाषण के बाद आरएसएस को तंज कसने से नहीं चुके. किसी ने कहा है कि प्रणब मुखर्जी ने आरएसएस को राजधर्म का पालन करना सिखाया. वहीं अब देखने वाली बात यह होगी कि आरएसएस के स्वयंसेवक जितनी ईमानदारी से प्रणब मुखर्जी का गुणगान कर रहे थे उतनी ही ईमानदारी से उनके विचारों को ग्रहण कर देश के लिए अपनी सोच बदलेंगे, नेहरू पर भद्दे कमेंट करने वाले कुछ लोग शायद अब नेहरू की वाह-वाही करने लगे? हो सकता है प्रणब मुखर्जी के आरएसएस मुख्यालय के इस दौरे के बाद देश की तस्वीर फिर बदले और देश में देशभक्तों की संख्या में इजाफा हो. 

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