कहते हैं हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रदोष व्रत कलियुग में अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करता है और हर महीने की त्रयोदशी तिथि में सायं काल को प्रदोष काल होता है. ऐसे में इस बार यह व्रत 17 फरवरी को आ रहा है तो अगर आप इस व्रत का उद्यापन कर रहे हैं तो हम बताने जा रहे हैं कि वह कैसे किया जाता है. आइए जानते हैं.
प्रदोष व्रत का उद्यापन -
– कहते हैं इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए तो ही लाभ होता है और मनोकामना पूरी हो जाती है.
– कहते हैं इस व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करना चाहिए तो ही सही माना जाता है.
– आप सभी को बता दें कि उद्यापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है और पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है.
– इस दिन प्रात: जल्दी उठकर मंडप बनाकर, मंडप को वस्त्रों और रंगोली से सजाकर तैयार किया जाता है और ‘ऊँ उमा सहित शिवाय नम:’ मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन किया जाता है.
– कहते हैं इस दिन हवन में आहूति के लिए खीर का प्रयोग किया जाता है और हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है और शान्ति पाठ किया जाता है.
– ज्योतिषों के अनुसार इसमें अंत में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशीर्वाद लिया जाता है.
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