17 फरवरी को है प्रदोष व्रत, जानिए इसका महत्व
17 फरवरी को है प्रदोष व्रत, जानिए इसका महत्व
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आप सभी को बता दें कि हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रदोष व्रत कलियुग में अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करने वाला माना जाता है. कहते हैं हर महीने की त्रयोदशी तिथि में सायं काल को प्रदोष काल कहा जाता है और ऐसा भी कहते हैं कि प्रदोष के समय महादेव कैलाश पर्वत के रजत भवन में इस समय नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं. वहीं कहते हैं जो भी व्‍यक्ति अपना कल्याण चाहते हैं यह व्रत रख सकते हैं. भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित इस व्रत को प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष को रखा जाता है. इस बार यह व्रत 17 फरवरी को आ रहा है तो आइए जानते हैं इस व्रत का महत्व.

प्रदोष व्रत का पौराणिक महत्‍व - कहते हैं प्रदोष व्रत के महात्म्य को गंगा के तट पर किसी समय वेदों के ज्ञाता और भगवान के भक्त सूतजी ने शौनकादि ऋषियों को सुनाया था. इस व्रत के संबंध में सूतजी ने कहा है कि कलियुग में जब मनुष्य धर्म के आचरण से हटकर अधर्म की राह पर जा रहा होगा. हर तरफ अन्याय और अनाचार का बोलबाला होगा. मानव अपने कर्तव्य से विमुख होकर नीच कर्म में संलग्न होगा. उस समय प्रदोष व्रत ऐसा व्रत होगा जो मानव को शिव की कृपा का पात्र बनाएगा और नीच गति से मुक्त होकर मनुष्य उत्तम लोकको प्राप्त होगा. सूत जी ने शौनकादि ऋषियों को यह भी कहा कि प्रदोष व्रत से पुण्य से कलियुग में मनुष्य के सभी प्रकार के कष्ट और पाप नष्ट हो जाएंगे.

कहा था कि यह व्रत अति कल्याणकारी है इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होगी. ऐसा भी कहा गया कि इस व्रत में अलग अलग दिन के प्रदोष व्रत से क्या लाभ मिलता है यह भी सूत जी ने बताया. सूत जी ने शौनकादि ऋषियों को बताया कि इस व्रत के महात्मय को सर्वप्रथम भगवान शंकर ने माता सती को सुनाया था. मुझे यही कथा और महात्मय महर्षि वेदव्यास जी ने सुनाया और यह उत्तम व्रत महात्म्य मैंने आपको सुनाया है. प्रदोष व्रत विधानसूत जी ने कहा है प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहते हैं. सूर्यास्त के पश्चात रात्रि के आने से पूर्व का समय प्रदोष काल कहलाता है. इस व्रत में महादेव भोले शंकर की पूजा की जाती है. इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है. प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल अक्षत धूप दीप सहित पूजा करें. संध्या काल में पुन: स्नान करके इसी प्रकार से शिव जी की पूजा करना चाहिए. इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से व्रती को पुण्य मिलता है.

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