आज है साल का पहला प्रदोष व्रत, जरूर पढ़े यह कथा
आज है साल का पहला प्रदोष व्रत, जरूर पढ़े यह कथा
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हर महीने जैसे दो एकादशी होती है ठीक वैसे ही हर महीने दो प्रदोष भी होते हैं। आप सभी को बता दें कि त्रयोदशी (तेरस) को प्रदोष कहा जाता है और हिन्दू धर्म में एकादशी को विष्णु से तो प्रदोष को शिव भगवान से जोड़कर देखा जाता है। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं प्रदोष व्रत की कथा, जो आप जरूर पढ़नी या सुननी चाहिए।

प्रदोष व्रत कथा : चंद्र को क्षय रोग था, जिसके चलते उन्हें मृत्युतुल्य कष्टों हो रहा था। भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी के दिन पुन:जीवन प्रदान किया था अत: इसीलिए इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा। हालांकि प्रत्येक प्रदोष की व्रत कथा अलग अलग है। स्कंद पुराण में प्रदोष व्रत के महामात्य का वर्णन मिलता है। इस व्रत को करने से सभी तरह की मनोकामना पूर्ण होती है।

एक अन्य कथा के अनुसार - चंद्रदेव जब अपनी 27 पत्नियों में से सिर्फ एक रोहिणी से ही सबसे ज्यादा प्यार करते थे और बाकी 26 को उपेक्षित रखते थे जिसके चलते उन्हें श्राप दे दिया था जिसके चलते उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। ऐसे में अन्य देवताओं की सलाह पर उन्होंने शिवजी की आराधना की और जहां आराधना की वहीं पर एक शिवलिंग स्थापित किया। शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें न केवल दर्शन दिए बल्कि उनका कुष्ठ रोग भी ठीक कर दिया। चन्द्रदेव का एक नाम सोम भी है। उन्होंने भगवान शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहां तपस्या की थी इसीलिए इस स्थान का नाम 'सोमनाथ' हो गया।

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