ये कैसी राजनीति जहां मौत को सियासत के तराजू पर तोला जाता है...?
ये कैसी राजनीति जहां मौत को सियासत के तराजू पर तोला जाता है...?
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आज इस लेख की शुरुआत मैं एक बहुत ही कड़वे सच के साथ कर रहा हु। एक कॉलेज के 14 छात्र समुद्र में डूबकर मर जाते है लेकिन हमारे देश में कानो कान खबर नही होती है। कोई नेता इनकी मौत पर आंसू बहाने नही जाता और कोई नेता या जिम्मेदार सड़को पर या सोशल मीडिया पर आंदोलन नही करता। इसकी वजह यह है की इस घटना में राजनैतिक मुनाफे की सम्भावना शून्य है।

भारत का दुर्भाग्य यही है की यहाँ मौत को भी जाती, धर्म और समुदाय के चश्मे से देखा जाता है और उसे राजनैतिक मुनाफे के तराजू पर तौला जाता है। इसके बाद तय यह होता है की  मौत पर किसको कितने आंसू बहाने है और कौन से वोट बैंक पर निशाना लगाना है। 

पुणे के ही कॉलेज से महाराष्ट के रायगढ में पिकनिक मानाने गए 116 छात्रो में से  14 छात्रो की डूबकर मौत हो गई लेकिन महारष्ट्र में हुई यह हृदयविदारक घटना राजनैतिक फायदे से जुड़े तमाम पैमानों पर खरी नही उतरती  और इसी लिए इस खबर को किसी ने भी गंभीरता से नही लिया। आज मेरे इस लेख के माध्यम से देश के नेताओ, बुद्धिजीवियो और  मीडिया से तीखा सवाल यही है कि महारष्ट्र में डूबकर मर जाने वाले 14 छात्रो की घटना पर इतना सन्नाटा क्यों है ? आखिर हमारे देश में मौत को लेकर भी इतना फर्क क्यों किया जाता है? 

ये भी इस देश के बच्चे थे जो अब इस दुनिया में नही रहे। इनकी मौत को लेकर देश में कोई सवाल नही उठ रहा है , कोई चर्चा नही कर रहा है। कोई आंदोलन नही कर रहा है। कोई सड़को पर नही दिख रहा है। कोई सोशल मीडिया पर नही लिख रहा है। कोई नेता दौड़कर इनके घर नही पंहुचा। क्योकि इनकी मौत में किसी को कोई राजनैतिक मुनाफा नही दिख रहा।

ये छात्र अपने कॉलेज के ग्रुप के साथ पिकनिक मानाने के लिए गए थे। लेकिन अचानक समुंदर की तेज लहरो के बिच ऐसा हादसा हुआ कि कई छात्र समुंदर में डूबने लगे जिसमे कई को तो बचा लिया गया लेकिन 14 छात्रों की डूबने से मौत हो  गई। 

संदीप मीणा 

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