अलग मसले-अलग राजनीति
अलग मसले-अलग राजनीति
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इन दिनों भारतीय जनता पार्टी उत्तरप्रदेश में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का आयोजन कर रही है. इस बैठक में उत्तरप्रदेश चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की तैयारियों पर चिंतन भी हो रहा है. उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव 2017 में होना हैं ऐसे में इन चुनावों के लिए विभिन्न दलों द्वारा विधानसभा चुनाव के लिए तैयारी की जा रही है. हालांकि ये चुनाव इतने अलग और महत्वपूर्ण हैं कि इनमें जातिय समीकरण का जोर अधिक देखने को मिल रहा है. यहां पर जातिय समीकरण अधिक है. दबंग और दलित की अपनी अलग राजनीति है।

उत्तरप्रदेश में मतदाताओं की वैचारिक शक्ति भी काफी अलग है. जिसके कारण राजनीतिक तौर पर मतदाताओं को प्रभावित कर लिया जाता है. कई बार यही नहीं उत्तरप्रदेश में इस बार ऐसे समीकरण बन रहे हैं जिससे किसी एक दल के लिए बहुमत पाना बहुत मुश्किल हो जाएगा. एक और बसपा सपा के विरूद्ध अपना जोर लगा रही है और दलितों और अल्पसंख्यकों को लुभाने में लगी है वहीं सपा के सामने राज्य में उपजी हिंसा, दलितों के प्रति हिंसा और अन्य मसले नकारात्मक तौर पर सामने हैं।

ऐसे में अल्पसंख्यक वोट भी विभिन्न दलों की ओर बंट रहे हैं. हालांकि भाजपा के पास विकास का मसला है. वह केंद्र सरकार के विकासीय कार्य के दम पर उप्र में वोट बंटोर सकती है. हालांकि श्री राम मंदिर के मसले पर सवाल उठ रहे हैं लेकिन इस मुद्दे को भारतीय जनता पार्टी ने दूर रख दिया है. जो कभी भाजपा का प्रमुख मसला हुआ करता था वह अब उसके लिए चुनावी मुद्दा नहीं रहा. भाजपा इस मसले को चुनाव में लाकर कोई परेशानी नहीं उठाना चाहती. बिहार में अंतिम दौर के चुनाव प्रचार की कमियां भाजपा समझ चुकी है ऐसे में वह किसी तरह का जोखिम नहीं उठाना चाहती है।

'लव गडकरी'

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