खाने के बाद जय बोलने पर लग रही राजनीतिक लगाम
खाने के बाद जय बोलने पर लग रही राजनीतिक लगाम
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देश में एक बहस चली थी कि आखिर क्या सेवन किया जाए, क्या बीफ का सेवन किया जाना उचित है, फिर मीट को कुछ क्षेत्रों में कुछ धर्मविशेष के लोगों की मांग पर बैन कर दिया गया तो हंगामा होने लगा, मगर अब तो हंगामा हो रहा है भारत माता की जय पर। भारत माता!  जय! किसकी जय। कौन भारत माता। इस तरह के सवाल किए जा रहे हैं। लोग पूछ रहे हैं कि भारत माता की जय कहने के प्रयोजन क्या हैं। यदि यह नहीं कहेंगे तो भैया आप अपना काम छोड़कर हमारी गर्दन पर छुरी रखोगे क्या। दूसरे लोग कहते हैं भारत माता की जय नहीं अब तो बगैर छूरी रखे जय श्री राम कहिए।

यानि अब यह नारा चलने लगा है। अजी भारत माता छोडि़ए जय श्री राम का नया शिगूफा लीजिए। आखिर यह किस तरह की राजनीति हो रही है, लगता है, कांग्रेस यूपीए-2 के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचारों के आरोपों से उबर नहीं पाई है तो भारतीय जनता पार्टी महंगाई, विकास की मंथर गति को छुपाने के लिए इस तरह के विवादों को तूल दे रही है, दोनों ही एक दूसरे के खिलाफ संप्रदायवादी राजनीति करने में लगे हैं। 

मगर असल में विकास की बात कोई नहीं कर रहा है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद को इस तरह की बहसों से अलग कर चुके हैं, उन्होंने कई नेताओं को इस तरह के विवाद न करने को लेकर ताकीद किया है। मगर इसके बाद भी सांसद और मंत्री स्तर के नेता इस तरह के विवादों को हवा दे रहे हैं। हालांकि इस मामले में आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड की शाहिस्ता अंबर द्वारा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक डाॅ. मोहन भागवत से हुई भेंट बेहद अहम मानी जा रही है।

जिसमें शाहिस्ता अंबर द्वारा यह कहा गया कि भारत माता की जय कहने में किसी को कोई परेशानी नहीं है मगर इसके बाद भी नेता इस मसले को तूल दे रहे हैं, अब कुछ नेता जय श्री राम का नया जुमला लेकर आ गए हैं और एमआईएम प्रमुख से यह जयकारा लगाने की अपील कर रहे हैं ओवैसी पहले ही कह चुके हैं कि भारत माता का स्वरूप बेहद अलग है। यह किसी हिंदू देवी के समान है, जबकि मुस्लिम भारत को माता नहीं मानते वे देश का सम्मान करते हैं, हिंदूस्तान को अपनी सरजमीन मानते हैं लेकिन माता स्वरूप में भारत माता नहीं कह सकते।

यह संविधान में लिखा भी नहीं है। ऐसे में दोनों ही पक्ष अपनी पर अड़े हैं और एक नया सांप्रदायिक विवाद छिड़ता नज़र आ रहा है, इससे देश के कई क्षेत्रों में विकास की गति प्रभावित हो रही है लेकिन राजनीतिक रूप से उन दलों को लाभ हो सकता है जो कि पांच राज्यों के ही साथ आने वाले समय में उत्तरप्रदेश में होने वाले चुनाव में सांप्रदायिकता की आंच पर अपनी रोटी सेंकने में लगे हैं। 

'लव गडकरी'

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