गोपालदास नीरज : अब कही घुल गया फूलों का शबाब
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अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए, जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए, इस कविता को कवि गोपालदास नीरज जी ने लिखा. आज वह हमारे बीच तो नहीं है लेकिन लगता है यह कविता उन्होंने आज के वक़्त को ध्यान में रखते हुए ही लिखी हो. 4 जनवरी 1925 को यूपी में जन्म लेने वाले नीरज जी ने अपने जीवन कई हिंदी फिल्मों के लिए गानें लिखे जैसे- शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब, लिखे जो खत तुझे, ऐ भाई.. जरा देखकर चलो, दिल आज शायर है, खिलते हैं गुल यहां, फूलों के रंग से, रंगीला रे! तेरे रंग में.

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इतना ही नहीं उन्होंने उर्दू में भी गानें लिखे. उन्हें हिंदी भाषा का भगवान कहा जाता है जिसके चलते उन्हें पद्म भूषण और पद्म श्री अवार्ड से नवाज़ा गया. नीरज जी एक ‘कवि’ के रूप में जितना मशहूर है उतना ही राजनीति में भी है. वैसे इन सभी उपलब्धियों को पाना नीरज जी के लिए इतना आसान नहीं था. महज़ 6 बरस की उम्र में पिता का साया सर से उठ गया और 10वीं के बाद पढाई छोड़ दी क्योंकि परिवार की पूरी जिम्मेदारी आ गई थी लेकिन मेहनत करने से कभी वह पीछे नहीं रहे.

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नीरज जी ने भले ही उन्होंने जन्म यूपी के इटावा में लिया था लेकिन अपना पूरा जीवन अलीगढ में बिताया लेकिन 93 साल की उम्र में बीमारी के चलते उन्हें दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया. यहीं उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली. 19 जुलाई 2018 को कवि गोपालदास नीरज जी हमें छोड़कर हमेशा-हमेशा के लिए इस दुनिया से चले गए.

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