मिसाल: विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता की माँ का देहांत, प्रधानसेवक ने पुत्र और 'राष्ट्रपुत्र' दोनों का फर्ज निभाया
मिसाल: विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता की माँ का देहांत, प्रधानसेवक ने पुत्र और 'राष्ट्रपुत्र' दोनों का फर्ज निभाया
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नई दिल्ली: पीएम नरेंद्र मोदी की माँ हीराबेन का 100 वर्ष की आयु में देहांत हो गया। इस दौरान देश के प्रधानसेवक अपनी माँ को लेकर भावुक रहे। हालाँकि, एक बेटे के रूप में अपना फर्ज निभाने के बाद, वे प्रधानमंत्री के रूप में अपने कर्त्तव्य को नहीं भूले। माँ की अंत्येष्टि करने के कुछ देर बाद वे पुनः अपने राजधर्म को निभाने में जुट गए।

लेकिन, जैसे ही प्रधानमंत्री की माताजी के देहावसान की खबर मीडिया में आई थी, लगा कि आज तो उनका पार्थिव शरीर कहीं अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा, फिर जैसा अन्य राजनेताओं के परिवार में होता है, उसी परंपरा के अनुसार राजसी तरीके से अंतिम संस्कार होगा। VVIP लोगों का ताँता लगेगा, हो सकता है पुलिस द्वारा फायरिंग कर सलामी भी दी जाए। पूरा अंतिम संस्कार का कार्यक्रम राजनितिक हो जाएगा, मगर ऐसा सोचते-सोचते टेलीविज़न देखा, तो पता चला कि, मोदीजी और उनके भाई पंकज भाई मोदी समेत परिवार के लोग तो माँ के पार्थिव शरीर को बिल्कुल सामान्य तरीके से लेकर श्मशान पंहुच चुके है। ये सब इतने सामान्य तरीके से हुआ, जितना मध्यम या आम लोगों के परिवारों में भी नही देखने को नही मिलता। मीडिया में आई तस्वीरों को देखकर भरोसा ही नही होता कि विश्व का सबसे लोकप्रिय नेता, अपनी माँ को इतने सामान्य तरीके से, बाँस और घास की अर्थी को कंधा देकर चला जा रहा है, चेहरे पर शोक साफ झलक रहा है, लेकिन कोई राजसी तामझाम नहीं, अंतिम यात्रा ऐसे निकली, जैसे हमारे मोहल्ले या कॉलोनी के किसी व्यक्ति के स्वर्ग सिधारने पर निकलती है। वरना, पीएम मोदी के एक इशारे पर पूरा केंद्रीय कैबिनेट, भाजपा के तमाम विधायक और हज़ारों-लाखों कार्यकर्ता वहां उपस्थित हो सकते थे।  

यह समाज के सामने बहुत बड़ी मिसाल है। नहीं तो आज हम लोग देखते हैं कि एक विधायक या सांसद के परिवार में भी किसी व्यक्ति का निधन होता है, तो वहां भी बड़े धूमधाम से तामझाम से उसे एक इवेंट का रूप दे दिया जाता है और राजनीतिक दिखावेबाजी शुरू हो जाती है। मगर, आज प्रधानमंत्री मोदी ने यह दिखा दिया है कि VIP भी एक आम इंसान है। उसका भी एक परिवार है, जिसे एक शालीनता से परिवार के साथ, घर के किसी भी प्रकार के कार्यक्रम को किया जा सकता है। 

सोचिए, अगर प्रधानमंत्री की माता के इसी श्रद्धांजलि कर्यक्रम को बड़े स्तर पर किया जाता, तो अहमदाबाद की जनता को कितनी समस्याओं का सामना करना पड़ता। मगर इस पूरी शोक यात्रा को एक सभ्य तरीके से पूरा कर मोदी परिवार ने उन VIP लोगों को, उन सियासी हस्तियों को एक संदेश दिया है कि आपको बिना तामझाम के भी अच्छे तरीके से अपने स्वजनों की शव यात्रा निकालकर उनका अंतिम संस्कार कर सकते है। बिना किसी सियासी ड्रामे के केवल 15-20 घर- परिवार के लोंगो की मौजूदगी में प्रधानमंत्री की माताजी का अंतिम संस्कार देखकर पूरा देश प्रेरणा ले सकता है। और बेटे का फर्ज निभाने के बाद भी प्रधानमंत्री तमाम भावनाओं के ज्वार को अपने ह्रदय में समेटे माँ भारती की सेवा में उपस्थित हो गए। बंगाल के लिए 7800 करोड़ की परियोजनाओं का उद्घाटन किया, राज्य की पहली वन्दे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया और यही नहीं, बंगाल न आ पाने के कारण जनता से माफ़ी भी मांगी। भारत की इस पवित्र धरा पर इस प्रकार के कर्तव्यनिष्ठ और जनसेवक विरले ही होते हैं। 

सरदार पटेल ने भी कायम की थी मिसाल:-

कुछ ऐसा ही लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल के जीवनकाल में भी देखने को मिला था। सरदार पटेल के कर्तव्यबोध, समर्पण और ईमानदारी की झलक उनके जीवन में साफ़ दिखाई देती है। सरदार पटेल एक जाने माने वकील थे। जनवरी 1909 में जब वे अदालत में हत्या के आरोपित अपने मुवक्किल का मुकदमा लड़ रहे थे, उसी दौरान उन्हें अपनी पत्नी झावेरबा के निधन का तार प्राप्त हुआ। इस आपातकालीन पत्र को पढ़कर उसे साधारण भाव से सरदार पटेल ने अपनी जेब में रख लिया और अदालत में जिरह करते रहे। 

अदालती कार्रवाई के बाद जब इस घटना की खबर उनके साथियों और जज साहब को उनकी पत्नी के देहांत की जानकारी मिली, तो उन्होंने सरदार पटेल पूछा। तब लौह पुरुष ने कहा कि, 'उस वक़्त मैं अपना फर्ज निभा रहा था, जिसका शुल्क मेरे मुवक्किल ने इंसाफ के लिए मुझे दिया था। मेरे मुवक्किल को झूठे मुक़दमे में फँसाया गया है। मैं उसके साथ अन्याय कैसे कर सकता था।' देश के प्रथम गृह मंत्री सरदार पटेल भी ऐसे ही सिद्धांतवादी, निडर और कर्तव्यनिष्ठ जननायक थे। 

वे अक्सर कहा करते थे कि जो भी व्यक्ति सुख और दुःख का समान रूप से स्वागत करता है, असल में वही सबसे बेहतर जीवन जीता है। सरदार पटेल कहते थे कि जो व्यक्ति अपने जीवन को बेहद गंभीरता से लेता है, उसे एक तुच्छ जीवन के लिए तैयार रहना चाहिए। देश की व्यक्तिवादी और मौकापरस्त सियासत के बीच इस तरह के चेहरे, भारत की संस्कृति और इसके कर्तव्यबोधता पर निष्ठा रखने वालों के लिए एक विश्वास के रूप में उभरते हैं। समय-समय पर ऐसे लोगों द्वारा दिखाए गए मार्ग, देश के लोगों और नेतृत्व का मार्गदर्शन करने का भी कार्य करते हैं।

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