एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने अमेरिकी दौरे पर पहुंचे। हालांकि इस बार मोदी का दौरा भारत और अमेरिका विषय तो है लेकिन इसमें संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन का भी समावेश है। इसलिए यह दौरा बेहद अहम है। इसके अलावा इस दौरे के बाद मोदी के प्रभाव की परख हो सकती है। दरअसल प्रधानमंत्री मोदी जब भी अमेरिका गए वहां उनका जोरदार स्वागत हुआ। वहां का वातावरण मोदी - मोदी की गूंज करता रहा लेकिन मोदी के दौरे की असली सफलता भारत और अमेरिका के बीच आपसी संबंधों के मजबूत होने और उनके आगे बढ़ने में है।
जिस तरह मोदी के दौरे के समय अमेरिका से भारत को अपाचे जैसे लड़ाकू हेलिकाॅप्टर्स की सप्लाय किए जाने का करार किया गया। वह भारत और अमेरिका के सामरिक संबंधों की सफलता को दर्शाता है। हालांकि भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में अभी काफी कुछ तय होना है। भारत वर्षों से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की मांग कर रहा है।
जिसे इस बार वैश्विक स्तर पर समर्थन मिल रहा है लेकिन अमेरिका समेत अन्य योरपीय देशों की कथनी और करनी में अंतर साफतौर पर देखा जा सकता है इसलिए भारत को स्थायी सदस्यता के मसले पर सैद्धांतिक पहल से हटकर अलग तरह के प्रयास करने होंगे। परमाणु उर्जा के गैर सामरिक उपयोग के लिए भारत को यूरेनियम की आपूर्ति के मसले पर भी यूएन के देशों से भेंट होने पर भारत के पक्ष में कुछ माहौल बन सकता है
क्योंकि सभी जानते हैं कि भारत ने कभी भी किसी देश को परमाणु हमले की धमकी नहीं दी और न ही उसने किसी की सीमाओं का अतिक्रमण किया है। दूसरी ओर भारत के लिए यह सुखद बात है कि वह पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद के मसले पर डी कंपन, लश्कर ए तैयबा, जैश ए मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों के साथ मुंबई हमले की घटना के मामले में अमेरिका का ध्यान खींचने में सफल रहा है। अमेरिका भी आईएसआईएस प्रेरित आतंकवाद के खात्मे की बात करता आया है।
इस दिशा में भारत को सैद्धांतिक सफलता मिलती नज़र आती है लेकिन इस सैद्धांतिक मंजूरी से हटकर अमेरिका समेत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का पक्ष और मजबूत हो तो इस दिशा में भारत सफल हो सकता है। बहरहाल भारत एक बार फिर विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ने में सफल रहा है। देश के साथ विदेश में भी मोदी मेनिया का जादू चल निकला है।