वैचारिक मंथन में प्रधानमंत्री ने सामने रखा अमृत बूंदों का कलश
वैचारिक मंथन में प्रधानमंत्री ने सामने रखा अमृत बूंदों का कलश
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उज्जैन/इंदौर। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरीसेना के साथ उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ 2016 के तहत आयोजित हुए वैचारिक महाकुंभ में पहुंचे। उन्होंने सिंहस्थ घोषणा पत्र जारी किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंच पर विराजमान सभी गणमान्यजन से मिले। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस कार्यक्रम के बाद साधु - संतों के साथ भोजन भी करेंगे। तीन दिवसीय विचार कुंभ के समापन अवसर पर उन्होंने कहा कि यहां पर श्रीलंका के विपक्ष के नेता आर थंबन भी उपस्थित हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनका भी अभिनंदन किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमारा एक स्वभाव दोष रहा कि हम अपने आप को परिस्थितियों को परे समझते हैं। हम उस तरह के सिद्धांतों में पले बढ़े हैं जहां पर शरीर आता और जाता है मगर हम आत्मा के अमरत्व के साथ जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि यह परंपरा हमें काल का गुलाम नहीं बनने देती है। वह परंपरा सामाजिक संदर्भ में शुरू हुई किस विचार में हुई इसे प्राप्त नहीं किया जा सकता है। उनका कहना था कि आखिर कुंभ की परंपरा कैसे बनी यदि यह विचार किया जाए तो कालखंड बहुत अंतराल वाला है मगर यह परंपरा मानव जीवन की सांस्कृतिक यात्राओं की पुरातन व्यवस्थाओं में से एक है। उनका कहना था कि यदि मैं अपनी तरह से विचार करूं तो कुंभ का मेला बारह वर्ष में एक बार होता है।

यह मेला नासिक, हरिद्वार में तीन साल में एक बार होता है। इस तरह के मेले भारत को एक साथ समेटते हैं। उनका कहना था कि समाजवेत्ता, संत, ऋषि, मुनि समाज के भाग्य के लिए नई - नई विधाओं का अन्वेषण करते थे। वे बाह्य जगत का भी विश्लेषण करते थे। यह चलता रहा मगर विचार संकलन, संस्कार को देने का कार्य कुंभ की परंपरा में समाहित है। बारह वर्ष में समाज कहां पहुंचा इसे भी इस मेले से ज्ञात किया जाता था। 

प्रत्येक तीन वर्ष बाद जब मेला लगता था तो उसका निष्कर्ष निकाला जाता था कि आखिर क्या अंतर आया। यह विचार किया जाता था। बदलता हुआ युग  और चिंतन - मनन कर तीन साल में फिर इसका आयोजन होता था। इस तरह की सामाजिक रचना अद्भुत थी। उन्होंने कहा कि प्रण खो गया मगर परंपरा रह गई। अब इतनी देर कौन रहे। पंद्रह मिनट की डुबकी लगाते हैं और फिर चले जाते हैं।

ऐसा विचार लोग करते हैं मगर संतों के आशीर्वाद से उज्जैन के सिंहस्थ में अलग प्रयास हुआ। आज मानव कल्याण के समाने क्या वैश्विक चुनौती है। मानव कल्याण के मार्ग क्या हो सकते हैं। पुरानी कार्रवाई को छोड़कर नए विचार के साथ किस तरह से आगे बढ़े इसका विचार करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि इस तरह के पवित्र अवसर पर ऋषियों और मुनियों का चिंतन हुआ। इन 51 बिंदूओं को समाज के सामने प्रस्तुत किया गया है।

उन्होंने कहा कि त्याग और तपस्या को जीवन समाज व्यवस्था में लगे लोग जीते हैं। चाहे वह एक किसान हो जो फसल की पैदावार करने में फंसा हो। वैज्ञानिक हो और वह अन्वेषण में लगा हो तो भी वे इस तरह का जीवन जीते हैं। उन्होंने विचारों की परंपराओं को वैचारिक कुंभ की तरह आगे बढ़ाने की अपील की। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि एक भिक्षुक भीक्षा देने और न देने वाले दोनों का भला चाहते हैं। हमारी रगों में यह भरा है कि सभी का भला हो।

हमारी रगों में भरा है कि त्याग कर ही आनंद होता है। आखिर यह विचार करना चाहिए कि क्या इस परंपरा को हम छोड़ तो नहीं रहे हैं लेकिन जब विचार होता है तो ऐसा लगता है कि आज भी वह परंपरा जीवित है। उन्होंने रसोई गैस की सब्सिडी छोड़ने की अपील का उदाहरण देते हुए कहा कि इस अपील का असर हुआ कि एक करोड़ से भी अधिक परिवारों ने अपनी गैस सब्सिडी छोड़ दी है। 

इसका परिणाम यह रहा कि गरीब परिवारों को घरेलू एलपीजी का लाभ मिला और 3 साल में 5 करोड़ परिवारों का घरेलू गैस उपलब्ध करवाकर उन्हें धुंए वाले चूल्हे से मुक्ति दिलवाने का उद्देश्य गैस सब्सिडी योजना के तहत दिया गया है। उन्होंने नारी की डिग्नीटी की बात करते हुए कहा कि सब्सिडी त्यागने से गरीब परिवार के सदस्यों को लाभ मिलेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि संतों ने कहा कि नरकरणी करें तो नारायण हो जाए। इसलिए हमें करणी को महत्व देना चाहिए। उनका कहना था कि तमसो मा ज्योर्तिगमय यह विचार छोटा नहीं है। हमारी परंपरा रही है कि ज्ञान तो अजर - अमर होता है।

यही हमारी शक्ति है। हम ऐसे समाज में हैं जहां विविधताऐं और कहीं कहीं लोगों को कान्फ्लीक्ट नज़र आता है। मगर हम लोग हैं जो इनहैरिट कॉन्फ्लीक्ट सिखाया गया। ऐसे भगवान राम जिन्होंने पिता की आज्ञा का पालन किया था हम वे लोग हैं जिसने पिता की आज्ञा की अवमानना की। हम वे हैं जो माता सीता को प्रणाम करते हैं। जिसने पति और ससुर की इच्छा के अनुसार जीवन दिया। हम उस मीरा की उपासना भी करते हैं जिसने पति की आज्ञा की अवज्ञा कर दी।

हम दर्शन से जुड़े हुए लोग हैं। दर्शन जीवन के निचोड़ से निकलता रहता है। समय के प्रवाह में उसका विस्तार होता है। उन्होंने मूल्यों पर चर्चा कर कहा कि हम मूल्यों की बात भी करते हैं। विश्व के नेता जब उनके देश में होने वाले चुनाव में जाते हैं तो वे यह बात करते हैं कि हमारे देश में फैमिली वैल्यू को स्थापित करना चाहिए। मगर हम फैलिमी वैल्यू में पले - बढ़े हैं। वैल्यूज़ वह विषय है जो समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं। हर समाज के अपने मूल्य होते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमें अपनी बातों को वैज्ञानिक आधार पर रखना होगा। उन्होंने कहा कि यह देश समुद्र पार न करने, विदेश न जाने की मान्यता से ग्र्रस्त था। मगर समय बदला तो संत ही आज विश्वभ्रमण करते हैं और समुद्र पार करके जाते हैं तो फिर परंपराऐं उनके लिए बाधा नहीं है। समय के साथ परंपराओं को मोड़ना दिशा देना हमारा कर्तव्य बनता है।

यदि ऐसा होता है तो समस्या का समाधान हम निकाल सकते हैं। विश्व ग्लोबल वार्मिंग और आतंकवाद का सामना कर रहा है आखिर इसका उपाय क्या है। लोग विचार कर रहे हैं कि तेरे रास्ते से मेरा रास्ता सही है। यही कॉन्फ्लीक्ट की ओर ले जा रहा है। हमें अपने भीतर को उपर उठाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि समय की उपज में नई विधाओं को जन्म देना जरूरी है। वे हम ही हैं जिसने वेद के प्रकाश में उपनिषद को जन्म दिया। श्रृति, स्मृतियों को जन्म दिया। ये आज भी हमें दिशा देती हैं लेकिन समय की मांग है कि यदि संसार का कल्याण करना है तो श्रृति, स्मृति या वेद के अमृत बिंदूओं को निकाला जाना चाहिए। 

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