
Phag Mahotsav 2025 : बसंत पंचमी से ही ब्रज में 40 दिवसीय होली की शुरुआत हो जाती है। इसी के साथ बरसाना में श्रीजी मंदिर में जहां अबीर-गुलाल की पहली बौछार होगी। वहीं वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में भी ठाकुरजी का बसंती श्रृंगार करने के बाद उन्हें गुलाल की फेंट बांधी जाती है और उनके चरणों में अबीर-गुलाल अर्पित किया जाता है। आपको बता दें कि ब्रज के लगभग सभी मंदिरों में बसंत पंचमी से ही होली महोत्सव की शुरुआत हो जाती है। यहां बसंत पंचमी से होली महोत्सव की शुरुआत हो जाती है और देश-विदेश से श्रद्धालु-पयर्टकों का ब्रज में आगमन शुरू हो जाता है। ब्रज में बसंत पंचमी के पावन मौके से यहां फाग महोत्सव की शुरुआत होती है, जो कि 40 दिन तक चलता है। तो आइए फ़ाग महोत्सव को विस्तार से जानते हैं।
आज से शुरू हो जायेगा मंदिरों में गायन-
मान्यता है कि बसंत पंचमी से ही होली की शुरुआत हो जाती है। आज बरसाना स्थित श्रीजी मंदिर में अबीर-गुलाल की बौछार की गई। वहीं वृंदावन के बांके बिहार मंदिर में कान्हा जी का बसंती श्रृंगार और उन्हें गुलाल की फेंट बांधने की परंपरा है। साथ ही ठाकुरजी के चरणों में गुलाल भी अर्पित किया जाता है। अपनी अनूठी परंपराओं को लेकर देश और दुनिया में विशेष पहचान रखने वाली ब्रज की होली में होली गीत, पद गायन की प्राचीन परंपरा है, जिसे समाज गायन भी कहा जाता है। बरसाना स्थित श्रीजी मंदिर में गुरुवार से ब्रजभाषा में रोजाना ठाकुरजी के समक्ष होली पदों का गायन किया जाएगा। गोस्वामीजन समाज गायन के दौरान आपस में एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं।
आइए जानते हैं बरसाने में कितने प्रकार से मनाई जाती है होली?
- लट्ठमार होली
- फूलों की होली
- लड्डू मार होली
क्यों मनाई जाती है लठ्ठ मार होली?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान श्री कृष्ण राधा जी मिलने के लिए बरसाना गांव गए, तो वह राधा जी और उनकी संग की सखियों को चिढ़ाने लगे। ऐसे में राधा जी और सखियों ने कृष्ण और ग्वालों को सबक सिखाने के लिए लाठी से पीटकर दूर करने लगीं। मान्यता है कि तभी से बरसाना और नंदगांव में लट्ठमार होली खेलने की शुरुआत हुई। कहा जाता है कि लट्ठमार होली की शुरुआत लगभग 5000 वर्ष पहले हुई थी।
बरसाने में फूलों की होली मानाने के पीछे क्या है परंपरा?
फूलों की होली का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। यह माना जाता है कि भगवान कृष्ण और राधा वृंदावन में फूलों से खेलते थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार कान्हा एक बार राधारानी से मिलने न जा सके। इसपर राधा रानी उदास हो गईं, जिससे फूल, जंगल सब सूखने लगे। ऐसे में जब भगवान कृष्ण को राधा जी के हालात का पता चला तो वह तुरंत ही उनसे मिलने पहुंचे। वहीं अपने कन्हैया को देख राधारानी बहुत खुश हो गईं, और इससे सभी मुरझाए फूल फिर से खिल उठे। वहीं उन्हीं खिले हुए फूलों से राधा रानी और कान्हा ने होली खेली। तब से इस दिन को मनाया जाने लगा।
क्यों मनायी जाती है लड्डू मार होली?
आपको बता दें कि बरसाना में लड्डूमार होली देखने के लिए न सिर्फ ब्रजवासी बल्कि देश-विदेश से लोग मथुरा आते हैं। ऐसी मान्यता है कि लड्डूमार होली में भले ही सैंकड़ों लड्डू लोगों के ऊपर फेंकें जाते हैं लेकिन हर किसी के लड्डू हाथ नहीं आता है और जिसके हाथ साबुत लड्डू लग जाए उस पर राधा रानी की असीम कृपा बरसती है और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
ब्रज में होली के प्रमुख कार्यक्रम
07 मार्च 2025 - लाड़ली जी मंदिर में लड्डुओं की होली
08 मार्च 2025 - बरसाने में लट्ठमार होली
09 मार्च 2025 - नंदगांव में लट्ठमार होली
10 मार्च 2025 - बांके बिहारी मंदिर में फूलों की होली
11 मार्च 2025 - द्वारिकाधीश मंदिर में होली
12 मार्च 2025 - बांके बिहारी मंदिर में होली
13 मार्च 2025 - बृज में होलिका दहन
14 मार्च 2025 - रंगों की होली देशभर
15 मार्च 2025 - बलदेव में दाऊजी मंदिर पर हुरंगा होली