क्या है यहाँ, जो घंटे की आवाज़ सुनते है दौड़े आते है गांव वाले...
क्या है यहाँ, जो घंटे की आवाज़ सुनते है दौड़े आते है गांव वाले...
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अक्सर देखा गया है कि पुराने ज़माने में जब राजा महाराजाओं को प्रजा तक कोई सन्देश देना होता था तो वो ढोल,नगाड़े या ऐसी ही किसी चीज़ का इस्तेमाल करते थे। जिसे सुन कर सभी लोग इकठ्ठा हो जाते थे। एक ऐसी ही परंपरा है जो आज भी एक गाँव में जीवित है। जहाँ गाँव वालों को कोई सन्देश या कोई चेतावनी देना होती है तो इसी तरह लोगों को इकठ्ठा किया जाता है।

ये परंपरा भीलवाड़ा के बागौर क्षेत्र में चली आ रही है। इस क्षेत्र का दृश्य ठीक फ़िल्म ‘लगान’ के उस दृश्य की तरह दिखता है, जब एक शख़्स मंदिर में ज़ोर-ज़ोर से ढोल बजाता है, जिसकी आवाज़ सुनकर गांव के लोग एक स्थान पर जुट जाते हैं। हालांकि भीलवाड़ा के बागौर क्षेत्र में ढोल नहीं बल्कि प्राचीन शिव मंदिर में मौजूद घंटे को बजाकर लोगों को इकट्ठा किया जाता है। ये रिवाज कई सालों से चला आरहा है। और गाँव वाले इससे भली भाँती परिचित है।

इतना ही नहीं इस घंटे की आवाज़ सुनते ही सारे लोग अपने कामों को छोड़कर तुरंत एक जगह पर एकत्रित होजाते हैं जहाँ उन्हें आने वाली परेशानी या किसी भी चीज़ के लिए आगाह किया जाता है। यहाँ के युवा और बुजुर्ग उस समस्या को पूरी तरह हल करने की कोशिश करते हैं।

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