कांग्रेस में अब भी जारी है घमासान, 40 साल एक ही परिवार के सदस्य रह चुके है अध्यक्ष
कांग्रेस में अब भी जारी है घमासान, 40 साल एक ही परिवार के सदस्य रह चुके है अध्यक्ष
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नई दिल्ली: कांग्रेस में उठा तूफान फिलहाल कुछ समय के लिए ही सही रुक सा गया है. CWC की बैठक के उपरांत  भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनी रहने वाली है. साथ ही अगला अध्यक्ष 6 महीने में चुना जाने वाला है. हालांकि गांधी नेहरू परिवार ही लंबे वक़्त तक पार्टी अध्यक्ष पद पर कब्ज़ा रहा है. परिवार के सदस्य तकरीबन 40 वर्ष तक इस पद पर बने हुए थे. इनमें सबसे लंबे समय तक सोनिया गांधी ने पार्टी का अध्यक्ष पद को काबू कर रखा है. वे तकरीबन 20 वर्षों तक कांग्रेस अध्यक्ष की भूमिका में रही हैं. हालांकि सत्ता से बेदखली के उपरांत कई बार ऐसी परिस्थितियां बनी हैं, जिसमे से कांग्रेस को अपने ही नेताओं की मुश्किलों से जूझना पड़ा है. सोनिया गांधी को पहले भी ऐसी ही परिस्थितियों से जूझना पड़ा है. तो चलिए जानते हैं कि आजादी के बाद गांधी परिवार और उनके अतिरिक्त कितने अध्यक्ष रहे हैं और आखिरी बार कांग्रेस में ऐसी परिस्थितियां कब तक रही है.

40 साल गांधी परिवार के अध्यक्ष: स्वतंत्रता के उपरांत से कांग्रेस 18 अध्यक्ष देख चुकी है. इनमें से 5 तो सिर्फ गांधी परिवार से रहे, बाकी 13 गांधी परिवार के सदस्य नहीं थे. हालांकि असलियत में गांधी परिवार के हाथों में ही सत्ता और संगठन की बागडोर थी और आज भी है. गांधी परिवार से आने वाले कांग्रेस के 5 अध्यक्ष तकरीबन 40 वर्षों तक इस पद पर रहे हैं. 1998 के उपरांत से कांग्रेस का अध्यक्ष पद निरंतर गांधी परिवार के पास ही था.

1998-99 में भी ऐसी ही परिस्थितियों से गुजरी कांग्रेस ; कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर जिस तरह की स्थिति है, लगभग वैसी ही परिस्थिति 1998-1999 में भी पार्टी के समझ थी. 1991 में राजीव गांधी के क़त्ल के उपरांत से ही कांग्रेस के कई नेता सोनिया गांधी को सक्रिय राजनीति में लाना चाह रहे थे, हालांकि वर्षों तक वे इसे टालती रहीं और 1997 में कोलकाता में पार्टी की प्राथमिक सदस्य रह चुकी है. राजीव की मौत के उपरांत ही नरसिंह राव और सीताराम केसरी कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुने गए थे. हालांकि उन्हें पार्टी में विरोध भी झेलना पड़ा. 1998 के मध्यावधि चुनाव में पार्टी की कमजोर तैयारियों के लिए केसरी को जिम्मेदार तेहरा चुके है. साथ ही उनके फैसला लेने की शैली ने आर कुमार मंगलम और असलम शेर खान जैसे नेताओं को नाराज कर दिया, जिन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. 14 मार्च 1998 को गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुन लिया गया. उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को एकजुट किया जाना था.

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