परशुराम द्वादशी: इस विधि से करें पूजा और पढ़े यह आरती
परशुराम द्वादशी: इस विधि से करें पूजा और पढ़े यह आरती
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आप सभी जानते ही होंगे हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की द्वादशी को परशुराम द्वादशी मनाई जाती है। जी हाँ और इस साल आज यानी 13 मई 2022 को परशुराम द्वादशी मनाई जा रही है। इस दिन पूरे देश में परशुराम जी की पूजा-अर्चना की जाती है। कहा जाता है भगवान परशुराम जी शास्त्र एवम शस्त्र विद्या के पंडित थे तथा प्राणी मात्र का हित करना ही उनका परम लक्ष्य रहा है। वहीं आज के दिन इस व्रत को करने से धार्मिक और बुद्धिजीवी पुत्र की प्राप्ति होती है। अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं परशुराम द्वादशी की पूजा विधि।

परशुराम द्वादशी की पूजा विधि- आज के दिन व्रत करने के लिए, स्नान ध्यान से निवृत होकर व्रत का संकल्प लें। उसके बाद भगवान परशुराम की मूर्ति स्थापित करें। अब भगवान परशुराम की पूरी भक्ति भावना से पूजा-अर्चना करें। वहीं इस दौरान मन में लाभ, क्रोध, ईर्ष्या जैसे विकारों को नहीं लाना चाहिए। इसी के साथ इस दिन व्रत करने वाले को निराहार रहना चाहिए। वहीं शाम को आरती अर्चना करने के बाद फलाहार ग्रहण करें। अब अगले दिन फिर से पूजा करने के उपरांत ब्राह्मण, ज़रुरत मंद, को दान दक्षिणा देने के बाद भोजन ग्रहण करें। आपको बता दें कि यह व्रत द्वादशी की प्रातः से शुरु होता है और दूसरे दिन त्रयोदशी तक चलता है। 

परशुराम जी की आरती-
शौर्य तेज बल-बुद्धि धाम की॥

रेणुकासुत जमदग्नि के नंदन।
कौशलेश पूजित भृगु चंदन॥
अज अनंत प्रभु पूर्णकाम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥


नारायण अवतार सुहावन।
प्रगट भए महि भार उतारन॥
क्रोध कुंज भव भय विराम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥

परशु चाप शर कर में राजे।
ब्रह्मसूत्र गल माल विराजे॥
मंगलमय शुभ छबि ललाम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥

जननी प्रिय पितृ आज्ञाकारी।
दुष्ट दलन संतन हितकारी॥
ज्ञान पुंज जग कृत प्रणाम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥

परशुराम वल्लभ यश गावे।
श्रद्घायुत प्रभु पद शिर नावे॥
छहहिं चरण रति अष्ट याम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥
 
ऊॅं जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।


ऊॅं जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
सुर नर मुनिजन सेवत, श्रीपति अवतारी।। ऊॅं जय।।

जमदग्नी सुत नरसिंह, मां रेणुका जाया।
मार्तण्ड भृगु वंशज, त्रिभुवन यश छाया।। ऊॅं जय।।

कांधे सूत्र जनेऊ, गल रुद्राक्ष माला।
चरण खड़ाऊँ शोभे, तिलक त्रिपुण्ड भाला।। ऊॅं जय।।

ताम्र श्याम घन केशा, शीश जटा बांधी।
सुजन हेतु ऋतु मधुमय, दुष्ट दलन आंधी।। ऊॅं जय।।

मुख रवि तेज विराजत, रक्त वर्ण नैना।
दीन-हीन गो विप्रन, रक्षक दिन रैना।। ऊॅं जय।।

कर शोभित बर परशु, निगमागम ज्ञाता।
कंध चार-शर वैष्णव, ब्राह्मण कुल त्राता।। ऊॅं जय।।

माता पिता तुम स्वामी, मीत सखा मेरे।
मेरी बिरत संभारो, द्वार पड़ा मैं तेरे।। ऊॅं जय।।

अजर-अमर श्री परशुराम की, आरती जो गावे।
पूर्णेन्दु शिव साखि, सुख सम्पति पावे।। ऊॅं जय।।

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