अपने ही करेंगे संसद की इज्जत को तार-तार
अपने ही करेंगे संसद की इज्जत को तार-तार
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भारतीय संसद में "सहिष्णुता और असहिष्णुता" को लेकर जबरदस्त बहस चली| प्रत्येक तर्क व कारण प्रारम्भ तो होते है और एक मुद्दे पर फिर जातिवाद के एजेंडे से भटक जाते है और खत्म होते है व्यक्तिवाद के मामले| पर टैक्स के करोड़ो रुपये प्रतिदिन खर्च करवा के देश की जनता के हाथ क्या आयेगा यह प्रमुख सवाल है| जिस तरह से आगे बढ़ा जा रहा है उससे यही लगता है कि अब संसद के अपने ही करेंगे संसद की ईज्जत को तार-तार! क्योंकि समस्या क्या है? व इनकी ये बहस किस तरह से मामले को और बिगाड़ रही है ये इनके भी समझ से परे लगता है|

एक उदहारण से समझने की कोशिश करिये, स्वतन्त्र सेनानी भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु पर अंग्रेजो की अदालत में केस चल रहा था तो उनके खिलाफ गवाही देने पहुंचे एक साथी को भड़का के जब बम बनाने की विधि पूछी ली तब भगत सिंह ने कहा था " हमने कितने प्रयास और अंग्रेज सरकार की पाबंदियों के बाद ये बम बनाने की विधि सीखी थी आज इस अदालत ने अखबारों के माध्यम से देश के हर बच्चे-बच्चे तक पंहुचा दिया.

आधिकारिक तौर पर इ-मेल के माध्यम से माननीय राष्ट्रपति महोदय, राष्ट्रपति-सचिवालय के सभी विभाग प्रमुख, प्रधानमंत्री कार्यालय, उच्चतम न्यायालय, लोकसभा स्पीकर एवं कई मीडिया समूहों के नेटवर्क तक भेज दिया है| इसका परिणाम वही होगा जो लोकपाल बिल पर अन्ना हजारे के रामलीला मैदान में अनशन से पहले हुआ था| 

हमने इसका एक उपाय राष्ट्रपति महोदय व प्रधानमंत्री को भेजा था| इस पर कार्यवाही हुई और राष्ट्रपति भवन से आदेश एक मंत्रालय के सयुक्त सचिव स्तर अधिकारी को अधिकृत करके भेजे गए| आज तक ये मामला हमारी जानकारी के अनुसार पेंडिंग ही है क्यों की हम संसद की सब्सिडी वाली कैंटीन की चक्की का आटा नहीं खाते इसलिए गंभीरता से नहीं लिया| परिणाम सरकार और ज्ञानी सरकारी अधिकारियो ने पूरी दुनिया के सामने "भारत मे गोरे अंग्रेज गये और काले आगये" सुनकर अपनी गरिमा पर चार चाँद लगवाये| सच तो सच होता है उस उपाय को भविष्य में लागु करना ही पड़ेगा अन्यथा हम शुन्य की तरफ तो बढ़ ही रहे है|

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