भारत में आये दिन कही न कही आतंकवादी हमले होते रहते है, हम लोग हमेशा इसकी त्रासदी को खुली आखो से देखते है व लगातार अपनों को खोने व कहियो के शरीर के अंगो को खो देने का गम लिए भुगत रहे है, इसलिए हम तुरन्त दुनिया में किसी भी देश पर आतंकवादी हमले की निंदा करते है और खुला समर्थन अग्रिम रूप से थाली में परोस देते है | राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया का लगातार प्रसारण शुरू हो जाता है हमारे विशेषज्ञ एवं अपनी पार्टी की सरकार कहने वाले तथाकथित लोग भारत को पहले दुनिया को चेताने का राग जपने लग जाते है | दो -चार विश्व नेताओ के साथ फोटो दिखा भारत की बढ़ती ताकत का अहसास कराने लग जाते है,
दूसरे देश अपनी जरुरत के समय या अन्य देशो पर जवाबी कार्यवाही करते समय भारत की थोड़ी सी बढ़ाई कर दे तो हम फूल के कुपा हो जाते है और हमारे निर्णायक छाती नापने में लग जाते है कि वो 56 इंच की है या 57 इंच की या 80 से ज्यादा की, परन्तु आतंक का त्रास से छाती पीट रही जनता अपनी छाती पिटती ही रहती है, भारत के जिम्मेदारों को अपनी छाती का असली आभास तब होता है जब यहाँ कोई हमला होता है तो जवाबी कार्यवाही के नाम पर उन देशो की प्रतिक्रिया आती है,
ये सब घटनाये तो बस गोलमाल हो गई है बस हम एक बंद गोले में "कोहलू के बैल" की तरह घूमते - घूमते क्या हासिल कर लेंगे, इस पर एक पोस्ट हमने 04 मई 2011 को 04:26 PM पर डाली थी, उसे ही हमने 24 अगस्त 2014 को दुबारा परिणाम के रूप में फॉरवर्ड करी जब अमेरिका ने पाकिस्तान में घुसकर बिन-लादेन को मारा था, आज हम फिर वो ही पोस्ट शेयर करेंगे जब फ़्रांस पर आतंकवादी हमला हुआ व कारवाही के रूप में सीरिया पर हवाई हमले और आमतौर पर विश्व अर्थव्यवस्था पर केंद्रित रहने वाले जी-20 सम्मलेन भी आतंकवाद पर कार्यवाही के मुद्दे पर केंद्रित हो गया,
हम इस पोस्ट को आगे होने वाले भविष्य के आतंकवादी हमलो पर यु ही पोस्ट करते रहेंगे, क्योंकि सच को मिटाया नहीं जा सकता व आज के युग में जब अंतिम परिणाम ही मायने रखता हो " भारत आतंकवाद के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर सकता " दुनिया के दूसरे देशो में शरण लिए आतंकवादियों पर कोई कार्यवाही नहीं कर सकता जैसे यूनाइटेड स्टेट अमेरिका करता है | पैसे की ताकत ही वो चाबी है जो आतंकवाद पर प्रतिबंद लगाने या सैनिक व मिसाइल हमले की कार्यवाही के बाद उठे प्रश्नो का जवाब होती है | पैसो की ताकत आती है वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन (WTO) के माध्यम से पेटेंट अधिकारों से और पेटेंट आते है नई टेक्नोलॉजी व अविष्कारों से भारत के जिम्मेदार लोग अधिकांश मामलों में इस सेक्टर को तवज्जो नहीं देते है,
भारतीय पेटेंट लेले उसके बाद जब पैसे के कमाई का समय आता है तो दूसरे देश भारत के वैज्ञानिको और अनुसन्धान को खरीद लेते है या अनुबंद से अपने अधीन कर लेते है | अन्त में भारत के लोग ही अपनी टेक्नोलॉजी का पैसा दूसरे देशो को लाइसेंस फीस या उत्पाद खरीद के देते है और अपने दिल व आत्मा को यह तसल्ली देते है कि इस तकनीक का वैज्ञानिक हमारे देश में पैदा हुआ था