परवरिश के लिए नहीं पैसा तो बेच दी संतान
परवरिश के लिए नहीं पैसा तो बेच दी संतान
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खोवई : देश में कई ऐसे मामले देखने में आ रहे है जिन्हे देखकर अपनी आँखों पर भी विश्वास नहीं होता है। हाल ही में त्रिपुरा के खोवाई जिले में एक जनजातीय दंपति के द्वारा अपने नवजात बेटे को किसी अन्य के हाथों बेचने की खबरें सामने आई है, बताया जा रहा है कि उन्होंने बेटे को इसलिए बेचा क्योकि उनके पास अपने बेटे की परवरिश के लिए पर्याप्त धन नहीं था। बताया जाता है कि गरीब दंपति ने सिर्फ 4,500 रुपये में अपने एक दिन के बेटे को पश्चिमी त्रिपुरा में मंदई प्रखंड माधबबारी इलाके के एक नि:संतान दंपति को बेच दिया। हालांकि त्रिपुरा की वामपंथी सरकार के अधिकारियों का दावा है कि पहले से ही तीन बच्चों के माता-पिता गरीब दंपति ने अपना बच्चा उन्हें भेंट किया।

घटना के प्रकाश में आने के बाद उठे विवाद के कारण बाद में सरकार ने एक गैर सरकारी संस्था के सहयोग से बच्चे को उसके जैविक और गोद लेने वाले माता-पिता से दूर सरकारी अनाथालय को दे दिया। विडंबना यह है कि उस नवजात का भाग्य अब भी उसके जैविक माता-पिता के हाथों में हैं, क्योंकि सरकार उनसे यह पूछेगी कि वे बच्चे को पालना चाहते हैं या नहीं। नवजात के पिता रंजीत टंटी ने यह भी बताया है कि "जब मेरी पत्नी तीन महीने की गर्भवती थी, तब हमने एक स्थानीय डॉक्टर से गर्भपात कराने के लिए आग्रह किया था।

लेकिन हमारे पड़ोसियों ने हमें गर्भपात नहीं कराने की सलाह दी और मुझे किसी ऐसे व्यक्ति से मिलाया जाएगा, जो बच्चे की अच्छी परवरिश करेगा।" रंजीत ने बताया कि वह जलावन की लकड़ियां बेचकर परिवार चलाता है। उसने कहा, "मेरा बेटा दो जून को पैदा हुआ था और हमने उसे अगले ही दिन एक नि:संतान दंपति को भेंट कर दिया। उन्होंने हमें 4,500 रुपये भी दिए थे।" जैसी ही घटना स्थानीय मीडिया में सार्वजनिक हुई, इसने राजनीतिक रंग ले लिया। यहां तक कि मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने घटना की सच्चाई पता करने के लिए जांच के आदेश भी दे दिए।

खोवाई के उप-संभागीय मजिस्ट्रेट सुमित रॉय चौधरी ने बताया, "असल में गरीब जनजातीय दंपति ने अपनी नवजात संतान को बेचा नहीं था। उन्होंने उसे एक नि:संतान दंपति को भेंट कर दिया था। हमने एक बालकल्याणकारी गैर सरकारी संस्था के सहयोग से बच्चे को अगरतला के सरकारी अनाथालय को दे दिया।" वहीं, त्रिपुरा कांग्रेस अध्यक्ष बिराजीत सिन्हा की राय अलग है।

उन्होंने कहा, "गरीब दंपति ने अपने बच्चे को इसलिए बेच दिया, क्योंकि वे बच्चे को नहीं पाल सकते थे। उनकी पारिवारिक आय बहुत कम है। हमने भारत के दूसरे राज्यों में भी इस तरह की घटनाएं सुनी हैं, लेकिन अब त्रिपुरा में भी बाल व्यापार की घटना देखने को मिल रही है।" जनजातीय कल्याण मंत्री एवं वरिष्ठ जनजातीय नेता अघोरे देबबर्मा ने कहा कि उन्हें घटना की सूचना मिली है और उन्होंने मामले की जांच के आदेश दिए हैं।

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